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प्रवचन सुधा
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जो जूं मारनेवालों के ही सम्पर्क में सदा रही है, उसे जू मारते हुए दया का लेश भी नहीं है ।
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भाई, जिनके हृदय में दया है, जो जीव घात से डरते हैं, चोरी नहीं करते, झूठ नहीं बोलते, दूसरों को बहू-बेटी पर नजर नहीं डालते और लोभ-तृष्णा से रहित हैं, ऐसे पुरुप सदा ही कुसंग से दूर रहते है । वे लोग कही ठहरने के पहिले यह देखते हैं कि यह स्थान हमारे ठहरने के योग्य है भी या नहीं ? उनको ठहरने आते-जाते वा खाने-पीने यादि सभी कार्यों में यतना करने की भगवान ने आज्ञा दी है। यदि किसी सन्त महात्मा को विहार करते हुए प्यास लग जावे तो उन्हें आदेश है कि वे तालाब कुंआ, प्याऊ आदि पर पानी नहीं पीवें । क्योंकि उक्त स्थानों पर बैठकर भले ही वे अपने साथ का प्रासुक निर्दोष
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जल क्यों न पीवें । परन्तु देखने वालों के हृदय में यह विचार उत्पन्न हो सकता है कि इन्होंने तालाव या प्याऊ का सचित्त पानी पिया है । इसी प्रकार साधु को गृहस्थ के ऐसे घर पर ठहरने की मनाई की गई है, जहां पर कि कपास आदि रखा हो और द्वार एक हो हो । क्योंकि द्वार खुला रखने पर यदि गृहस्थ के सामान की चोरी हो जाय, तो साधु के बदनाम होने की सम्भावना रहेगी और यदि द्वार बन्द रखें तो जीव दुख पावे । इसलिए भगवान ने ऐसे स्थान पर ठहरने का साधु के लिए निषेध किया है ।
मर्यादा से मान रहेगा
भाई, वि० सं० १९९० की साल अजमेर में साधु-सम्मेलन था । हम गुजराती और काठियावाडी सन्तों को लेने के लिए उधर गये थे । एक दिन हमने अठारह कोस का विहार किया तो थक गये। माघ का मास था, सर्दी को जोर था । फिर आबू के समीप तो उसका कहना ही क्या था । समीप में एक रेल्वे स्टेशन था । हमने स्टेशन मास्टर से ठहरने के लिए पूछा । उसने कहा – कोई मकान खाली नही है । तब एक भाई ने बेटिंग रूम खोल देने के लिए कहा | स्टेशन मास्टर बोला- यदि रात को कोई अफसर आगया, तब आपकते खाली करना पड़ेगा । हमने कहा ठीक है, यदि कोई आजाय, तो आप हमसे कह देना । हम जाकर वेटिंग रूम में ठहर गये। रास्ते के थके हुए थे सो लेटते ही हम लोग सो गये । रात के दस बजे को गाड़ी से कोई अफसर उतरा | उसने ठहरने के लिए वेटिंग रूम खोलने को कहा । तव स्टेशन मास्टर ने कहा - वेटिंग रूम में तो जनाना सरदार है । अतः उसके लिए बाहिर ही प्रबन्धकर दिया गया । उनके ये शब्द मैंने सुन लिये। मेरे साथ में छगनलालजी स्वामी और चांदमलजी स्वामी थे। मैंने उनसे कहा - यहां ठहरने पर यह