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धर्मवीर लोकाशाह संघ में मिलते है तो लाख रुपये की बात है। यदि बाहिर रहकर कार्य करते हैं तो सवा लाख रुपये की बात है और यदि स्वतन्त्र रहकर संगठन का कार्य करते है तो डेढ़ लाख रुपये की बात है। कोई कही भी रहकर और किसी भी संघ में मिलकर काम करे, पर एक ही आवाज सब ओर से ज्ञान, दर्शन और चारित्र को उन्नति के लिए ही आनी चाहिए, मैत्रीभाव लेकर के आवें और सब में मिलकर काम करें, यही भावना भरनी चाहिए।
बन्धुओ, कोई भी साधू किमी गच्छ या सम्प्रदाय का क्यों न हो, सवकी वाणी सुनना चाहिए और सबके पास जाना आना चाहिए। सनने और जानेआने में कोई आपत्ति या हानि नहीं है। किन्तु जो संगठन का विरोध करें और कहे कि हम ही साहूकार है और सव चोर है, तो भाई, जो होगा उसे ही सव चोर दिखेंगे और वही सबको चोर कहेगा । और यदि वह साहूकार होगा, तो औरों को भी साहूकार कहेगा और भला बतलायगा। नया और घुला हुआ कपड़ा पहिनते हैं। उसमें यदि कदाचित् कीचड़ के छींटे लग जाते हैं, तो उसे क्या फाड़कर फेंक देते हैं, या धोकर शुद्ध करते है । यदि कही किसी मे कोई कमजोरी दृष्टि गोचर हो तो उसे ठीक कर दो और यदि उचित जंचे तो आगे बढ़ने का प्रोत्साहन दे दो। सवको अपना उद्देश्य भी विशाल बनाना चाहिए और विचार भी उच्च रखना चाहिए।
अन्त में एक आवश्यक वात और कहना चाहता हूं कि यहां पर मनुष्यों को तो हितकारिणी सभा है और श्रावक संघ भी है । परन्तु बहिनों में तो कोई भी सभा आदि नहीं है । मैं चाहता हूं कि यहां पर एक वर्धमान स्थानकवासी महिला-मंडल की स्थापना हो। यहां की अनेक बहिनें अच्छी पढ़ी-लिखी और बी० ए० एम० ए० पास हैं और होशियार है। वे महिला-समाज में जागति का काम करें, कुरीतियों का निवारण करें और दिन पर दिन बढ़ती हुई इस सत्यानाशी दहेज प्रथा को बन्द करने के लिए आगे आवें । मैं जहां तक जानता हूं, लड़के की मां को पुत्रवधू के घर से भर पूर दहेज पाने की उत्कट अभिलापा रहती हैं । पर जब स्वयं उनके सिर पर बीतती है, तब क्या सोचती हैं ? इसका हमारी वहिनों को विचार होना चाहिए । पढी-लिखी लड़कियों को चाहिए कि दहेज मांगनेवालों को समाज का घातक व राक्षस समझें और ऐसे विवाहों का बहिष्कार कर देवें । यदि यह भावना इनमें आजाय और ये स्त्री समाज-सुधार का बीड़ा हाथ में उठा लें तो आधा काम रह जाय । आप वहिनों में अनेक बहिनें काम करने जैसी है । यदि काम करने की लगन हो तो पच्चीस