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प्रवचन- गुधा
पाताल जैसा अन्तर दृष्टिगोचर होगा । फिर कैसे उनका मिलान और समन्वय किया जाय ? उस काल में जो लोग कोयले से भी अधिक काले थे, ग में जिनके दुराचार भरा हुआ था और जो किसी भी संत की संगति में जाने को तैयार नहीं थे और न किसी महापुरष के वचन ही सुनना चाहते थे, ऐसे लोग भी अवसर मिलने पर और महापुरूषों का लग मा प्रसाद पाने पर कोयले से एक दम हीरा बन गए। आज के वैज्ञानिक कहते है कि कोयला हो एक निश्चित ताप मान पाकर के हीरा रूप से परिणत हो जाता है। भाई, मनुष्य काले से उज्ज्वल बने कच 7 जब कि उनके बनने को हार्दिक भावना हो । जब तक स्वयं को उज्ज्वल बनाने की हार्दिक भावना नहीं हो, तब तक कोई भी व्यक्ति उज्ज्वल नहीं बन सकता है ।
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दस्युराज रोहिणेय भाइयो हमारे सामने ऐसा पौराणिक उदाहरण (रोहिणेय का ) उपस्थित है कि पिता पुत्र से कहता है बेटा, अपन लोग जन्म जात चोर हैं और अपना जोवन-निर्वाह चोरी से ही होता है । यदि चोरी न करेंगे तो चोर कुल के कलंक कहे जायेंगे । अतः मेरे वाद तुम अपने घराने की परम्परा वो भली प्रकार निभाना । पुत्र कहता है— पिताजी, मुझे आपके वचन शिरोधार्य हैं, में कुल- परम्परागत धर्म का भली भांति से निर्वाह करूंगा । पुत्र से चाप कहता है कि देख, यदि कभी आते-जाते नित्रंन्य ज्ञातृ पुत्र भगवान् महावीर मार्ग में मिल जायें तो भूल करके भी उनके दर्शन कभी मत करना । न उनके बचन हो सुनना । यदि तू सचमुच में मेरा पुत्र हैं तो मेरी इस शिक्षा को सदा ध्यान में रखना और उस पर सदा अमल करना । पुत्र कहता है पिताजी, मुझे आपकी ये सब शिक्षाएँ और आज्ञाएँ मान्य हैं । मैं कभी भी चलूँगा । इस प्रकार वह चोर अपने पुत्र को शिक्षा देकर मर गया । आप लोग बतायें कि उसकी इन शिक्षाओं को भली कहा जाय, या बुरी ? ये पुण्यो पार्जक हैं या पापास्रवकी कारण हैं ? ये बुरी है और पापास्रव की कारण हैं । परन्तु जिन्हें पर-भव का भय ही नहीं है तो उनको कहने का कुछ अवसर भी नही है ।
इनके प्रतिकूल नही
बाप के मरने के बाद उसका लड़का चोरों का सरदार वन गया । और अपने बाप से भी बढ़कर खूंख्वार डाकू हो गया । उसके पास ऐसी तरकीबें और विद्यायें थीं कि उसे कोई पकड़ नहीं पाता था । वह प्रति दिन राजगृह नगर में डांके डालता और लोगों को लूट कर चला जाता था । सारे नगर में खलबली ही मच गई । जहाँ राजा श्रेणिक जैसे प्रतापी, तेजस्वी और न्यायमूर्ति