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धर्मवीर लोकाशाह
७२ में बहते थे। उनकी राज्य से सम्मा
गाँव में ओसवाल-कुलावतंस राज्य से सम्मानित श्री हेमाशाह दफ्तरी नामक महापुरुष रहते थे। उनकी पत्नी का नाम श्री गंगादेवी था। वि० सं० १४७२ में आज कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा के दिन एक होनहार पून का आपके यहां जन्म हुआ । गर्भ में माने के पूर्व ही माता गंगादेवी ने शुभ स्वप्न देखे थे। शुभ मुहूर्त में पुत्र का नाम लोकचन्द्र रखा गया, जो आगे चलकर सचमुच में ही लोगों का चन्द्रमा के समान आनन्द-कारण और लोक में उद्योत-कारक सिद्ध हुआ।
इतिहास को लिखने का दावा करनेवाले अनेक 'इतिहासज्ञ, विद्वान् कहते हैं कि सिरोही राज्य में अटवाड़ा नामक कोई गांव ही नहीं था। परन्तु मैं उन्हें बता देना चाहता हूं कि यह गांव सिरोही से तीन कोस की दूरी पर आज भी अवस्थित है। जिस समय में इतिहास की खोज में लग रहा था, उस समय अजमेर में साधु-सम्मेलन होने वाला था। हम लोग गुजराती सन्तों को लेने के लिए गुजरात की ओर गये थे। उस समय हमने इस गांव को स्वयं देखा वहां पर १५० घर है। इसी समाज के अग्रगण्य केई श्रावक हमारे साथ थे । आश्चर्य इस बात का है कि इतिहास लिखनेवाले विना कोई छान-वीन किये लिखते हैं कि इस नाम का कोई गांव ही नहीं है । जिन्हें आंखों से दिखता नहीं, ऐसे जीव यदि कह दें कि सूर्य ही नहीं है, तो क्या यह मान लिया जायगा ? कभी नहीं।
जो पुण्यशाली और आदर्श महापुरुप होते हैं, उनका जन्म, रहन-सहन और आवागमन सारा मंगलमय हुआ करता है और उनकी पुण्यवानी से नयी-नयी वातें पैदा होती हैं । लोकाशाह के पिता जवाहिरात का धन्धा करते थे। एक बार वालक लोकचन्द्र किसी काम से सिरोही पधारे और उद्धवशाह जी की दुकान पर गये। उनके भी जवाहिरात का व्यापार था। कुछ व्यापारी उस समय दुकान पर आये हुए थे। उद्धवशाह जी ने मोतीजवाहिरात का डिब्बा निकाला और व्यापारी लोग मोतियों को देखने लगे। उन लोगों की दृष्टि नहीं जमी तो मोल-भाव नहीं पट रहा था। लोकचन्द्र समीप में ही बैठे हुये थे, उन्होंने एक दाना उठाकर कहा- इस जाति के मोती के एक दाने का मूल्य इतना होता है। यह सुनकर व्यापारी लोग उनकी ओर देखने लगे और पूछा--कुवर साहब, आपने इतना मूल्य कैसे आंका ? उन्होने कहा-इसका पानी ही बतला रहा है और यह भविष्य में और भी उत्तम पानीदार निकलेगा। व्यापारियों को वात जंच गई और वे सौदा ૨૪