Book Title: Pravachan Sudha
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 383
________________ ३७० प्राचन-मुधा लेकर चले गये । उनके जाने पर उद्धवशाह ने पूछा - तुम कहा रहते हो और किसके पुन हो ? लोकचन्द्र ने अपना परिचय दिया। परिचय पाकर वे बहुत प्रसन्न हुये। उद्धवशाह जी के प्रसन्न होने का कारण यह था कि उनकी एक कन्या विवाह योग्य हो गई थी और वे योग्य पान की तलाश में थे। वे स्वय अच्छे जौहरी थे और इस बालक मे जवाहिरात की परीक्षा का विशेष गुण देखा तो वे उस पर मुग्ध हो गये। और इनके ही साथ अपनी सुपुत्री का सम्बन्ध करने का निश्चय किया। दूसरे ही दिन उद्धवशाह जी अटवाजा गये और हेमाशाह के घर आये। प्रारम्भिक शिष्टाचार के पश्त्तात् हेमाशाह ने पूछा-शाह जी, कैसे पधारना हुआ ? उद्धवशाह ने कहा-आपके जो कु वर लोकचन्द्र है उनके लिए नारियल देने को आया हूँ। हेमाशाह ने कहा आप पधारे तो ठीक है। यद्यपि मेरा आपका पूर्व परिचय नहीं है और मैंने आपका घर-द्वार भी नही देखा है तो भी जब आप जैसे वडे आदमी आये हैं, तब मैं आपका प्रस्ताव अस्वीकार भी नही कर सकता है। भाइयो, यदि आप जैसे सरदारो के सामने ऐसा प्रस्ताव आता है, तब आप तुरन्त पूछते-~-क्या कितना दोगे? फिर कहते-हम पहिले घर आकर के लडकी देखेंगे, पीछे बाबू भी लडकी देखने जायगा और साथ में उसकी माँ-वहिन भी होगी। सब बातें तय होने पर ही यह सम्बन्ध हा सकेगा? और ऐसा कहकर सामने वाले को तुरन्त पीछा ही लौटा देते। भाई, पहिले के लोग जाति का गौरव और समाज का बडप्पन रखते थे और यह सवाल ही नहीं उठता था कि दावू देखेगा। आपके पूर्वज जाति और समाज का गौरव दखते थे, वे कागज या चाँदी के टुकडो पर अपनी नीयत नही डुलाते थे। हा, तो बिना कोई सौदा किये हेमाशाह ने नारियल झेल लिया और शुभ लग्न में सानन्द विवाह सम्पन्न हो गया। और लोकचन्द्र अपने कारोवार को संभालने लगे। कुछ समय के बाद एक दिन रात्रि में सोते समय भगवान पार्श्वनाथ की अधिष्ठात्री पद्मावती देवी ने स्वप्न म कहा-'लोकचन्द्र । कैसे सोता है ? क्रान्ति मचा और सोते हुए समाज को जगा'। इसके परचात् तीसरे दिन पुन स्वप्न में पद्मावती देवी ने दर्शन दिये । लोकचन्द्र न पूछा-आप कौन हैं और क्या प्रेरणा दे रही हैं ? समाज तो भारी लम्बा चौडा है इसको नगाऊँ और क्रान्ति मचा हूँ, यह कैसे सभव है। देवी ने

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