________________
धमंदीर लोकाशाह
३७१ अपना परिचय देते हुए कहा--तू चिन्ता मत कर और मागे आकर काम कर । मैं तेरी सहायता करूँगी।
कुछ समय के पश्चात् एक दिन हेमाशाह ने लोकचन्द्र से कहा-अपने यहां धान्य बहुत एकत्रित हो गया है और घास भी। इन्हें बेच देना चाहिए । लोकचन्द्र ने कहा- पिताजी, अपने को दोनों ही नही बेचना है। आगे के पांच वर्ष देश के लिए बहुत भयंकर थानेवाले हैं, उस समय ये ही अभाव की पूर्ति करेंगे और इनसे ही मनुष्य व पशुओं की पालना होगी। हेमाशाह ने पूछा-- तुझे ऐसा कैसे ज्ञात हुमा ? तब उन्होंने कहा-~-मुझे स्वप्न में ही ऐसी सूचना मिली है।
कुछ समय के पश्चात् चन्द्रावती नगरी-जो कि आबू पर्वत पर करोड़ों रुपये लगाकर मन्दिरों का निर्माण कराने वाले वस्तुपाल-तेजपाल की वसाई हुई थी, उसके राजा के साथ सिरोही के राजा की कुछ अनवन हो जाने से लड़ाई चेत गई। दुर्भाग्य से उसी समय दुप्काल पड़ गया । लगातार पांच वर्ष तक समय.
पर वो नहीं होने से लोग अन्न के एक-एक दाने के लिए तरसने लगे और __ घास के चिना पशुओं का जीवित रहुना दूभर हो गया। सारे देश में हाहाकर
मच गया । पहिले आजकल के समान ऐसे साधन नहीं थे कि तत्काल बाहिर कहीं से सहायता पहुंच सके। ऐसे विकट समय को देखकर लोकचन्द्र ने सारे देश में समाचार भिजवाया कि कोई भी मनुष्य अन्न के विना और कोई भी पशु घास के विना भूखा न मरे। जिसको जितना धान्य और घास चाहिए हो, वह मेरे यहां से ले जावे। भगवती पद्मावती माता की ऐसी कृपा हुई कि प्रति दिन सैकड़ों लोगों के धान्य और घास के ले जाने पर भी उनके भंडार में कोई कमी नहीं आई और लगातार पांचवर्ष तक पूरे देश की पूत्ति उनके मंडार से होती रही । इस प्रकार जनता का यह भयंकर संकटकाल शांति से बीत गया। तव सारे देशवासियों ने एक स्वर से कहा- यह लोकचन्द्र केवल लोक का चन्द्रमा ही नहीं है किन्तु लोक का शाह भी है और तभी से लोग उन्हें लोकशाह के नाम से पुकारने लगे।
___ इसके कुछ दिन पश्चात् एक दिन लोकशाह के माता पिता ने पूछा- तुझे तो भविष्य की बहुत दूर की सूझती है। बता, मेरा आयुप्य कितना शेष है ? लोकाशाह कुछ समय तक मौन रहे, फिर गंभीर होकर बोले - पिताजी, आप का तथा माताजी का आयुष्य केवल सात दिन का शेष है। यह सुनते ही हेमाशाह ने और सेठानी ने तत्काल सारा काम-काज छोड़कर और त्याग