Book Title: Pravachan Sudha
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 388
________________ धर्मवीर लोकाशाह ३७५ भीनमाल, और पाटन इन चार स्थानों का संघ अहमदाबाद में एकत्रित हुया । उनमें मोतीजी, दयालजी आदि सैकड़ों व्यक्ति साथ थे। संघ को कहा गया कि लंका मूथा (लोकाशाह) शास्त्र पढता है । संघ के अनेक प्रमुख लोग उनकी वाचना सुनने के लिए गये तो उन्हें बहुत आनन्द आया । वे लोग प्रतिदिन वाचना सुनने के लिए आने लगे। यात्रा-संघ में शाह लखमशी भी थे। पाटन के कुछ व्यापारियों ने आकर संघवालों से कहा---आप लोग क्या देखते हो ? लोकाशाह जी उत्पात मचा रहे हैं, उनको रोको । तव उन लोगों ने कहा—लोकाशाह छोटा बच्चा नहीं है जो यों ही रोकने से रुक जायगा । मै मौके से आऊंगा और सब भ्रान्ति मिटा दूंगा। अवसर पाकर लखमी लोकाशाह से मिलने के लिए उनकी हवेली पर गये। लोकाशाह ने उनका समादर किया। लखमशी ने कहा-शाहजी, पहिले भी कई मत निकल गये है अब आपने यह कौतुक क्या शुरु किया है ? उन्होंने उत्तर दिया कि मुझे कोई नया मत नहीं निकालना है। आप शास्त्रों को सुनिये, तो आपका सव भ्रम मिट जायगा । यह कहकर लोकाशाह ने उन्हें आचारांग सूत्र सुनाया । शाहजी की वाचना सुनते ही वे आनन्द में मग्न हो गये। उन्होंने पूछा-आपने यह अनुपम ज्ञान कहां से पाया? लोकाशाह ने उत्तर दिया-भाई, यह भगवद्-वाणी तो जान का भंडार है। इन शास्त्रों के स्वाध्याय से ही मैंने यह कुछ थोड़ा सा-जान प्राप्त किया है। आप इनका स्वयं स्वाध्याय कीजिए तो आपकी आँखे खुल जायगी और पता चलेगा कि साधु का मार्ग क्या है और श्रावक का मार्ग क्या है ? यह सुनकर लखमशी ने कहा-आप इस साधुमार्ग का और सत्यधर्म का उद्धार कीजिए। आप हमारे अग्रगामी बनिये, मैं भी आपके साथ हूँ। लखमशी के आग्रह पर लोकाशाह संघ के साथ हो लिये और चारों संघ के लोग उनके अनुयायी वने । मंघ तीर्थयात्रा के लिए आगे चला 1 जब संघ मार्ग में एक स्थान पर पहुँचा और वर्पा काल आगया तो वहीं कुछ दिन ठहरना पड़ा। बन्धुओ, पहिले आवागमन के साधन आजकल के समान नहीं थे। बैलगाड़ियां लेकर लोग यात्रा के लिए निकलते थे और एक ही तीर्थस्थान की यात्रा में महीनों लग जाते थे, क्योकि उस समय आजकल के समान सर्वत्र डामर-रोड नहीं थे। कच्चे मागों से जाना पड़ता था और जहां कहीं पानी बरस जाता तो कई दिन वहा ठहरना पड़ता था। जव मार्ग में ठहरे हुए कई दिन हो गये तो संघ के लोगों ने कहा-~यहां तो काम बिगड़ रहा है । संघपति से कहा जाय कि वे संघ को यहां से रवाना करें। संघपति ने कहा--महाराज,

Loading...

Page Navigation
1 ... 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414