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मनुष्य की चार श्रेणियां
२५१ कितना पतला और कोमल है । पर जब वर्षा का पानी वेग पकड़ता है, तो बड़े-बड़े बांधों को तोड़ता जाता है और बड़े-बड़ मकानों और वृक्षों को उखाड देता है। भाई, वेग में इतनी प्रवल शक्ति होती है। इसी प्रकार जिन लोगों के हृदय में काम करने का वेग या जोश होता है, वे बड़े से बड़े कठिन कामों को भी आसानी से कर डालते है। कर्मशील व्यक्ति का मस्तिष्क भी उबर होता है, उसमे नित्य नयी-नयी कल्पनाये प्रादुर्भूत होती रहती है और वह ऐसे-ऐसे महान कार्य कर दिखाता है कि संसार उसे देखकर आश्चर्य चकित हो जाता है। परन्तु ये सब आश्चर्य-जनक, अपूर्व और खोज-शोध के कार्य वही कर सकता है, जो सरदार है, जिसका मस्तिष्क उर्वर है और जो सदा कर्तव्यशील रहता है। किन्तु जो मुर्दार है, कायर है, अकर्मण्य है और कार्य करने से डरते है, उनसे किसी कार्य की आशा नहीं की जा सकती है। जो अपनी रोटी ही नहीं जुटा सकते, उनसे उक्त कार्यों की आशा भी कैसे की जा सकती है। यदि मुर्दार मनुष्य अपना मुर्दापन या कायरता छोड़कर प्रतिदिन थोडा-थोडा भी परिश्रम करे और सरदार या उर्वर मस्तिष्क वाले पुरुप की संगति करे और उससे कुछ न कुछ सीखे तो एक दिन वह भी सरदार बन सकता है।
भाइयो, मनुप्य वही कहलाने के योग्य है, जो कि उर्वर मस्तिष्क और सरदार मनोवृत्ति का है। वह पुरुषार्थ करते करते एक दिन उन्नति के शिखर पर पहुंच जाता है। कहा भी है।
मन बढ़ते बढ़ते वचन, धन बढ़ते क्या देर ।
मन घटते घटते वचन, फिर दुख में क्या फेर ।। मन के बढने पर कीर्ति बढती है और कीति बढने से नया उत्साह पैदा होता है और उत्साह मे सभी कार्य सम्पन्न हो जाते है। यदि मनुष्य ने दिल मोटा किया तो फिर सब बातें छोटी होती जावेगी । आपने सुना है कि मम्मण सेठ कितना कंजूस था, जबकि उसके पास ९९ करोड़ की विशाल धन राशि थी। चौमासा प्रारम्भ होते ही वह अपने सव मुनीम-गुमास्तों को छुट्टी दे देता था, क्योकि उस समय कोई व्यापार चालू नहीं रहता था। उस समय कुल्हाड़ी लेकर जंगल मे जाता दिन भर लकडियां काटता और भारी लेकर सायकाल घर आता तथा उन्हे वेचकर रोटी खाता था। भाई, देखो..जिसके पास इतनी अपार सम्पत्ति हो और निन्यानवे करोड का धनी हो, वह क्या ऐसा तुच्छ कार्य और वह भी वर्षा ऋतु में करेगा ? कभी नहीं करेगा। परन्त मम्मण सेठ फिर भी करता था। एक ओर जहा उसमे इतनी उद्योगशीलता