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प्रवचन-सुधा
कुछ समय के बाद सेठानी ने फिर उसे बुलाकर के कहा—बेटा, तूने धर्मकार्य सीख लिये और करने भी लगा है, सो हम बहुत प्रसन्न है । अब एक बात और सुन । पुरुप चार प्रकार के होते हैं—सिंह के समान, हाथी के समान, अश्व के समान और वृपभ के समान । वता-तू इनमें से किस प्रकार का मनुष्य बनना चाहता है ? उसने कहा-मां साहब, मैं तो सिंह के समान पुरुप बनना चाहता हूं। सेठानी ने कहा तो वेटा, बन जा ! यह सुनते ही वह बोला-लो मां साहब, अपना यह घर-वार संभालो । मैंने धर्म ग्रन्थों में पढा है और ज्ञानियों के मुख से सुना है कि यह मेरा घर नहीं है, यह पर घर है । अव में अपने घर को जाऊंगा। यह कहकर वह सबसे विदा लेकर साधु वन गया । उसने अध्यात्म की उच्च श्रेणी पर आरोहण किया और परम विशुद्धि के द्वारा सर्वकर्मों का नाश कर सदा के लिए निरंजन बन गया ।
भाइयो, जो पुरुप सिंह के समान निर्भय होते है, वे ही ऐसे साहस के काम कर सकते हैं। आप लोग भी अपने को महावीर की सन्तान कहते हो। पर मैं पूछता हूँ कि आप महावीर के जाये हुए पुत्र हो, या गोद गये हुए पुत्र हो ? भगवान महावीर के तो पुत्र हुआ ही नहीं, अतः जाये हुए पुत्र तो हो कैसे सकते हो? हां, गोद गये हुए हो तो फिर अभी कहे गये कथानक के समान उस घर को भी संभाल लेना । जैसे वह एक चोर होते हुए भी एक सच्चा साहूकार बना और अन्त में महान् साहूकार बन गया । फिर आप लोग तो महावीर के पुत्र हो और साहूकारों के घरों में जन्म लिया है। इसलिए आप लोगों को सिंह वृत्ति के पुरुप बनकर अपने आपको और अपने वंश को दिपाना होगा, तभी आप लोगों का अपने को महावीर का अनुयायी कहना सार्थक होगा। भगवान महावीर का चरण चिन्ह 'सिंह' था । उनकी ध्वजा में भी सिंह का चिन्ह अंकित था, तो उनके अनुयायियों को सिंह जैसी प्रकृति का होना ही चाहिए। और अपने कुल का यश सत्कार्य करके सर्व ओर फैलाना चाहिए। भगवान महावीर के धर्म की तभी सच्ची प्रभावना होगी जब उनके अनुयायी उन जैसे ही महावीर और सिंह जैसे शूर बनेंगे । जो वीर होते हैं वे अपने दिये वचन का पूर्णरूप से पालन करते हैं । यह नहीं कि ग्यारह बजे आने का नाम लेकर तीन दिन तक भी आनेका पता नहीं चले ? जिसके इतनीसी भी वचनों की पाबन्दी नहीं है तो वह वीर और साहूकार कैसे बन सकता है ? भाई, वचनों से ही साहूकारी रहती है । कहा भी है कि
वचन छल्यो वलराज वचन कौरव कुल खोयो । वचन काज हरीचन्द नीच घर नीर समोयो ।