Book Title: Pravachan Sudha
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 376
________________ आध्यात्मिक चेतना से चार व्यक्तियों ने पूज्य श्री से दीक्षा ग्रहण की। नगर निवासियों ने चतुर्मास करने के लिए प्रार्थना की। पूज्य श्री ने उसे स्वीकार कर चार मास तक भगवान की वाणी सुनाई और शुद्ध मार्ग की प्ररूपणा की, जिससे ४५० व्यक्तियो ने उसे अगीकार किया और पोतिया बंध धर्म छोड़ दिया। भाइयों, दुःखों को सहन किए बिना सुख नही मिलता है। आप लोग दुकानों पर जाकर बैठते हैं, गर्मी का मौसम है, लू चल रही है, सिर के ऊपर टीन तप रहे है, पसीना झर रहा है और प्यास लग रही है, फिर भी ऐसे समय र्याद ग्राहक माल खरीदने के लिए पहुंचते हैं, और मन-चाहा मुनाफा मिल रहा है, तब क्या आप लोग को घर का तलघरा और पंखा याद आता है, या खाने-पीने की बात याद आती है ? जैसे कमाऊ पूत सुख-दुख की परवाह नहीं करता है, उसी प्रकार आत्म-कल्याणार्थी सन्त लोग और मुमुक्षु गृहस्थ लोग भी अपने कर्तव्य-पालन करने और धर्म का प्रचार करने में सुखदुःख की चिन्ता नही करते हैं। जो केवल व्याख्यानों में पंजा घुमाने वाले है, जिन्हें खाने को अच्छा और पहिनने को बढ़िया चाहिए, उनसे धर्म का साधन नही हो सकता और न प्रचार ही । साधुओ के लिए तो भगवान का यह आदेश यह हस्योपकाराय तज्जीवस्यापकारकम् । यज्जीवस्योपकाराय तद्दे हस्यापकारकम् ॥ अर्थात् जो जो कार्य देह का उपकार करने वाले हैं, वे सब जीवका अपकार करने वाले है और जो जो साधन जीव के उपकारक है, वे सब देह के अपकारक हैं। भाई, शरीर की तो यह स्थिति हैं कि पोषत तो दुख देय घनेरे, शोपत सुख उपजावे । दुर्जन देह स्वभाव बरावर, मूरख प्रीति बढ़ावे ।। ज्यो-ज्यो इस शरीर का पोपण किया जाता है, त्यों-त्यो यह और भी अधिक दुर्गतियो के दुःखों को देता है और ज्योज्यो इसका शोषण किया जाता है, त्यो त्यो यह सुगति के सुखों को और अक्षय अविनाशी आत्मिक सुख को देता है। __भाइयो, साधुओ का मार्ग आराम करने के लिए नहीं है। यहाँ तो जीते जी मौत का जामा पहिन कर चलना पड़ता है। घर का बिगाड़ेगे तो सारी समाज की महत्ता नष्ट हो जायगी। इसलिए हमें निर्ममत्व की ओर बढना चाहिए । आत्मानुभवी किसे कहते हैं ? जिसने आत्मा के मही चित्र को अपने

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