Book Title: Pravachan Sudha
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 377
________________ प्रबनना भीतर खींच लिया है। कमरे से नहीं, और मालम से भी नही । किन्तु अपनी आन्तरिक भावनाओं से, पर-परिणतियों को दूर कर और उन्हें निलांजलि देकर स्व-परिणति में स्थिरता पा ली हैं, उन्होंने ही आत्मा का गना नित खीना है और वे ही सच्चे परमानन्द-रम के आरवादी बने है। ऐसे ही पाध्यात्मिक चेतना की जागृति वालो के लिए कहा गया है कि----- यों चित्त निज में थिर भये तिन अफर जो आनन्द सह्यो, सो इन्द्र नाग नरेन्द्र वा अहमिन्द्र के नाहीं कह्यो । जो पुरुष अपने भीतर यह चिन्तयन करते हैं कि मेरा स्वरूप तो दर्णन, ज्ञान, सुख और बल-वीयंमय है, अन्य कोई भी पर भाव मेग स्वस्प नहीं है, इस प्रकार की भावना के साथ अपनी आत्मा में स्थिर हो जाते हैं, उन्हें जो अनिर्वचनीय आनन्द प्राप्त होता है, वह इन्द्र, अहमिन्द्र, नरेन्द्र और धरणेन्द्र को भी प्राप्त नहीं है। बन्धुओ, जो महापुरुष ऐसे आत्मस्वरूप में स्थिर हो जाते हैं, वे बाहिरी वस्तुओं के संयोग और वियोग की कोई चिन्ता नहीं करते हैं। ये सदा आनन्द के साथ अपने गन्तव्य मार्ग पर चलते रहते हैं और मागं में आने वाली किसी भी बड़ी से बड़ी विघ्न - वाधा से विचलित नहीं होते हैं । बाग लोगों को बड़े सौभाग्य से यह स्वाधीन मोक्ष का मार्ग मिला है, इसलिए अपने भीतर आत्म चेतना को जागृति कीजिए। उसे कही से लेने को जाना नहीं है । वह अपने भीतर ही है। उनके ऊपर विकारो का जो आवरण आ गया है, उसे दूर कीजिए और फिर देखिए कि हमारे भीतर कितनी अमूल्य प्रकाशमान निधि विद्यमान है। जिसके सामने बैलोक्य की सारी सम्पदा भी नगण्य है। चतुर्दशी का संदेश भाइयो, आज कात्तिक सुदी चतुर्दशी है । यह हमें याद दिलाती है पाप के जो चौदह स्थान हैं, उनका त्याग करना चाहिए। वे हैं सचित दव्व विगह, पन्नी तंबोलवत्थ कुसुमेस । वाहण सयण विलेवण, बंभ दिसिनाण भत्तेसु । इन चौदह वस्तुओं की मर्यादा करो। भगवान ने कहा है कि मर्यादा करने से सुमेरु के समान बड़े-बड़े पाप रुक जाते हैं। केवल सरसों के समान छोटे पाप रह जाते हैं। यदि अन्तरग मे ममता रुक गई तो सब पाप रुक गये । यदि ममता नहीं रुकी और वाहिरी द्रव्य कम भी कर दिया तो भी कोई लाभ नहीं । जैसे आपने आज औरों को देखा देखी या मेरे कहने से उपवास कर लिया । पीछे घर जाने पर कहते हैं-चक्कर आ रहे हैं, भूख प्यास लग

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