Book Title: Pravachan Sudha
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 374
________________ आध्यात्मिक चेतना नमुचि ने देखा कि ये साधु मेरे सिद्धान्त को स्वीकार करने लिए किसी भी प्रकार तैयार नहीं हैं, तब उसने एक-एक करके पाँचसी ही मुनियो को घानी मे पिलवा दिया। भाई, बताओ, इस जोर-जुल्म का कोई पार रहा ? उन सभी साधुलो ने हसते हसते प्राण दे दिये, परन्तु अपना सिद्धान्त नहीं छोडा । न उन्होंने अपने प्राणो की भिक्षा ही उससे मागी । उनके भीतर यह दृढ श्रद्धान और विश्वास या कि हमारा सिद्धान्त ठीक है। अत उन्होने मरना स्वीकार किया, मगर अपना मिद्धान्त छोडना स्वीकार नहीं किया। उन मुनियो मे अनेक तो लब्धि-सम्पन्न ये । यदि वे चाहते तो नमुचि को यो ही भृकुटि के विक्षेप से, या दृष्टिपात मान से भस्म कर सकते थे । परन्तु वे लोग तो सच्चे अहिंसा धर्म के आराधक थे, प्राणिमात्र के रक्षक थे और परीपहउपसगों के सहन करने वाले थे । वे स्वय मरण स्वीकार कर सकते थे, परन्तु दूसरे को कष्ट देने का स्वप्न मे भी विचार नही कर सकते थे । वे मोक्ष के मार्ग पर चल रहे थे, अत्त ससार के मार्ग पर कैसे चल सकते थे ? अपनी इसी आध्यात्मिक चेतना और दृढता के बल पर उन्होने मोक्ष को प्राप्त किया । जिनके भीतर यह आत्म-विश्वास नहीं है, वे ही लोग दूसरो के बहकावे मे या डराने में आ सकते है और अपना धर्म छोड़ सकते है, किन्तु धर्म का और आत्मस्वरूप का वेत्ता व्यक्ति निकाल में भी अपना धर्म नही छोड सकता है। क्षमामूति रघुनाथ पूज्य श्री रघुनाथ जी महाराज विक्रम सवत् १९८९ की साल जालोर पधारे। उस समय वहा पर पौतिया बध धर्म का प्रचार या । उसकी श्रद्धा करने वाले वहा सैकडो व्यक्ति थे | उन लोगो को जैसे ही यह ज्ञात हुआ कि रघुनाथजी महाराज अपने धर्म का प्रचार करने के लिए इधर आ रहे है तो वे लोग लाठी लेकर नगर के बाहिर खड़े हो गये और बोले कि यहा आप को आने की भावश्यकता नही है। पूज्य श्री ने पूछा, क्यो? तो उन् लोगो ने कहा कि यहा पर हमारे धर्म का प्रचार हो रहा है। आप यहा उसमे विक्षेप करने के लिए आये हैं, अत यहाँ नहीं ठहर सकते । पूज्य श्री ने कहा--आप लोग भोले हैं। हम तो गाव-गाव मे प्रचार करते आ रहे है, और करते हुए जावेगे। आप लोग हमे रोकनेवाले कौन होते हैं ? हा, यदि राज्य-शासक कह देवे कि तुम लौट जाओ तो हम एक कदम भी आगे नहीं रखेगे । परन्तु आप लोगो के कहने से नहीं लौट सकते हैं। वे लोग उत्तेजित होकर बोले-~-यदि नगर के भीतर एक कदम भी रखा तो मारे जाओगे। पूज्य श्री ने कहा--भाई, आत्मा तो मरती नही है और शरीर का हमे कोई

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