Book Title: Pravachan Sudha
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 349
________________ प्रवचन-सुधा रखा है ? इसे बन्द कर मेरी दवा लो। इसी प्रकार संसार में खोटे प्रवचनों का प्रचार करने वाले पाखण्डी बहुत हैं। उनका निराकरण करने वाले और परस्पर में लड़ने-झगड़ने वाले वहुत हैं। उनके विवाद को दूर कर अपेक्षा और विवक्षा से कथन करने वाला स्याद्वादरूपी सक्से वा चिकित्सक कहता है कि रेचन के लिए अमुक औषधि का लेना भी आवश्यक है और पाचन के लिए अमुक गोपधि भी उपयोगी है. तथा शरीर-पोषण के लिए अमुक औषधि श्रेष्ठ है, इस प्रकार यह स्याद्वादरूपी महावैद्य सबके पारस्परिक विक्षेपों को दूर कर और वस्तु का यथार्थ स्वरूप वतला करके उन्हें यथार्थ मुक्ति-मार्ग का दर्शन कराता है। अतः जिज्ञासु और मुमुक्षु जनों के लिए विक्षेपणी कथा भी हितकारक है। तीसरी कथा का नाम संवेगिती है। सम् अर्थात् सम्यक् प्रकार से पुण्य और धर्म के फल को बता करके वेग पूर्वक जो धर्म और पुण्य-कार्यो मे लगाते और पाप एवं अधर्म कार्यों से बचाने वाली कथा को संवेगिनी कथा कहते हैं । नदी में जब वेग ठाता है तो उसके सामने कोई वस्तु नहीं ठहर सकती है, किन्तु सब बहती चली जाती है । इसी प्रकार आत्मा के भीतर जव धार्मिक भाव जागृत होता है, तब उसके सामने विकारी भाव नही ठहर सकते हैं । चौथी कथा का नाम निदिनी है। जब मनुष्य बार-बार पापों के फलों को सुनता है। तब उसका मन सांसारिक कार्यों से उदासीन हो जाता है और तभी वह उनसे बचने का और सन्मार्ग पर चलने का प्रयत्न करता है। इसलिए वैराग्य बढ़ने वाली निर्वेदिनी कथा का भी भगवान ने उपदेश दिया है । उक्त चारों ही धर्म-कथाएँ है। धर्म कया करने का अभिप्राय है कि हमको शान्ति प्राप्त हो और हमारी आपदाएं दूर हों। लोग कहते है कि हमें तो सदा चिन्ताएं ही घरे रहती हैं, एक क्षण को भी शान्ति नहीं मिलती है। भाई, ऐसा क्यो होता है ? इसका कभी आप लोगों ने विचार किया है ? यदि मनुष्य अपनी चिन्तामों के कारणों पर विचार करे तो उसे ज्ञात होगा कि उसने इन चिन्ताओं को स्वयं ही घेर रखा है। मनुष्य जब अपनी शक्ति, पुरुपार्थ और भाग्य को नहीं देखकर अमित और असीमित धनादि के प्रलोभन में फंसता है, तभी उसे चारों ओर से चिन्ताएँ घेरे रहती हैं ! यदि वह यह विचार करे कि हे मात्मन, तुझे खाने को पाव-डेढ़ पाव का आहार पर्याप्त है, सोने के लिए साढ़े तीन हाथ भूमि और शरीर ढंकने के लिए दो गज कपड़ा चाहिए है। फिर तू क्यों लोक्य की माया को पाने लिए हाय-हाय करता है और क्यों चिन्ताओं के पहाड़ को अपने सिर पर ढोता है ? इन

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