Book Title: Pravachan Sudha
Author(s): Mishrimalmuni
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 365
________________ भरता हो लिए। सुदर्शन को ले जाकर समान AIEE मा और न को शूनी पर पाने का काम दिग, समोर माना । उसने अवधिज्ञान से जाना नि नमानगरी मेंमा मान और एक नियोंष धारिमा बलि, दो पुरती पर अपने हिरणगगी देव को नामा ची पानगरी मकर नुमनट का संकटमको या मादा पावर लगामातही चम्पानगरी में पहुंचा और जंग ही नापा ने गुदर्शन को नली पर पड़ाया ग देवने उगे तत्काल गिहागन बनायर उन पर गुगंगा को बंश शिया, जि. ऊपर ब लगाया और दोनों ओर से घर बनेगमे । कान में शेवदु'दुनिया बजने लगी और सुदर्शन नी जय-जय के माल की होने लगी। जैसे ही यह गमाचार राजा रोः पाग पहना तो नाही मनान पहुँचा और नगर निवासी लोग भी आ गई। सबले गुमान गदय की जय', 'सुदर्शन सेठ को जय' धर्म की जय' के नारे निकलने लगे, जिमग माया माकाश गूज उठा। राजा ने देखा कि यहा तो मामला ही उलटा हो गया है। और देव मेरी ओर चाहष्टि से देख रहा है तो वह साष्टाश नमस्कार करता आ बोला---मुझे क्षमा किया जाय, मेरे में बड़ी भूल हो गई है। देवन कहा--तुने अपराध तो बहुत भारी शिया जो रानी के वाहने में आ गया और बुद्धि-विवेक से काम नहीं लिया। किन्तु सुदर्शन सेठजो की आज्ञा से मैं तुझे माफ करता है। परन्तु भागे से ऐसी भूल कभी मत करना । राणा ने हाय जोकर देव की आज्ञा को शिरोधार्य किया और सुदर्शन से क्षमायाचना करते हुए कहा-सेठजी, अब तो मेरी ओर कृपा दृष्टि सरी । सेठ ने आये हए संकट को दूर हआ जान कर पौषध पाला। राजा ने बड़े भारी अनुनय-विनय के साथ उन्हें अपने हाथी के ऊपर सिंहासन पर बैठाया और स्वयं उनके ऊपर छन तातकर पीछे खड़ा हो गया। दोनों ओर दीवान और नगर-प्रधान चंवर ढोलने लगे। उपस्थित सारी जनता ने सेठजी का जयजयकार किया। इस प्रकार बड़े समारोह के साथ सारी नगरी में घूमता हुन जुलूस सेठजी की हवेली पर पहुंचा। सेठजी हाथी पर से उतर कर जैसे ही देव के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के अभिमुख हुए कि उसने कहा-मेरा अभिवादन पीछे करना । पहिले जाकर अपनी सेठानी का ध्यान पलाओ। सुदर्शन ने भीतर जाकर कहा----मनोरमे, ध्यान पालो। तुम्हारे सत्य और शील के प्रभाव से सब संकट दूर हो गया है और सत्य की विजय हुई है। देखो- इस देवराज ने

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