________________
३५०
प्रवचन-सुधा
'जो जो पुद्गल फरसना, सो सो निश्चय होय । इस प्रकार मनाते और धमकाते हुए जब रानी ने देखा कि यह तो बोलता ही नहीं है और अब सवेरा होने को ही आगया है, तब उसने प्रियाचरित फैलाया और आवाज लगाई-दौड़ो दौड़ो, मेरे महल में चोर आ घुसा है, इसे पकड़ो। पहरेदार आवाज सुनकर जैसे ही महल के भीतर गये तो सुदर्शन सेठ को आसन पर बैठा देख करके बोले-महारानी जी, ये तो सुदर्शन सेठ हैं, चोर नहीं हैं। महारानी बोली कोई भी हो, पर जब मेरे महल में रात्रि के समय आया है, तब चोर ही है। इसे पकड़ कर ले जाओ। पर द्वारपाल लोग उन्हें प्रायः महाराज के पास आते-जाते और बैठते-उठते देखते थे, अत. उन लोगों की हिम्मत पकड़ने की नहीं हुई और वे लोग अपनी असमर्थता बतला करके वापिस चले गये।
इतने में सबेरा हो गया और जब यह बात महाराज के कानों तक पहुंची कि सुदर्शन सेठ आज रात्रि में महारानी जी के महल में आये हैं और महारानी जी ने चोर-चोर की आवाज देकर द्वारपालों को पुकारा। फिर भी उन लोगों ने उसे नहीं पकड़ा है। तब वे भी अतिविस्मित होते हुए महारानी के महल में पहुंचे और सुदर्शन को देखकर बोले-सेठजी, रात के समय महारानी जी के महल में कैसे आये ? परन्तु वे तो उपसर्ग दूर होने तक मौन लेकर ध्यानस्थ थे, अतः उन्होंने कुछ भी उत्तर नहीं दिया। राजा ने कई बार प्रेम से पूछा । मगर जब कोई भी उत्तर नहीं मिला, तब रानी बोली
"महाराज, आप इससे क्या पूछ रहे है ? क्या यह अपने मुख से अपना पाप आपके सामने कहने की हिम्मत कर सकता है ? यह ढोंगी, बगुला-भक्त जो आपके सामने धर्म की लम्बी-चौड़ी बातें किया करता है, वह रात में पता नहीं, कव कहां से मेरे महल में मा घुसा और रात-भर इसने मेरा शीलखण्डन करने के लिए अनेक उपाय किये। मगर बड़ी कठिनाई से मैं अपना शील बचा सकी। जब मैंने पहरेदारों को आवाज दी, तब यह ढोंगी ध्यान करने का ढोंग बनाकर बैठ गया। इस प्रकार रानी के द्वारा कान भरने पर और सेठ के द्वारा कोई उत्तर नहीं दिये जाने पर राजा को भी कुछ बात जंची कि अवश्य ही 'दाल में कुछ काला' है। तव उन्होंने क्रोधित होकर कहा-देख सुदर्शन, तू अब भी जो कुछ वात हो, सत्य-सत्य कह दे, अन्यथा इसका नतीजा बुरा होगा। इस प्रकार धमका कर पूछने पर भी जव सेठ की ओर से कोई उत्तर नहीं मिला, तब राजा ने क्रोधित होकर पहरेदारों को हुक्म दिया