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प्रवचन-सुधा
किया और अपनी कमाई में स आधा हिस्सा दिया, वही भाई जरा सी बात पर तुम्हे मारने के लिए लाठी लेकर तैयार हो जाता है । जिस पुत्र के लिए तुमने अपने सब सुख छोडे और स्वय भूये रहकर पाल पोस कर बडा किया, वही एक दिन सब कुछ छीनकर स्वय मौज करता है और तुम्हें दर-दर का भिखारी बना देता है । जिस स्त्री की इच्छाओ को पूरा करने के लिए तुमने हजारों पाप किये और लाखो कष्ट सहे बही निर्धनता और निर्बलता आ जाने पर तुमसे मुख मोड लेती है। ससार के ये सब सम्बन्ध स्वार्थ से भरे हुए है और अन्त मे उस रत्नद्वीपवासिनी देवी के समान मरणान्तक कष्ट देने वाले हैं । किन्तु जो जिनपाल के समान इन सबसे मुग मोटकर और गुरु वचनो पर श्रद्धा न कर आगे की ओर ही देखते हुए बढते चले जाते है, वे मर्व दुखो से पार होरर निरावाध सुख के मडार अपने मोक्ष घर को पहुच जाते हैं। इसलिए पिछली बातो को विसार कर आग की ही विचारणा करनी चाहिए । कहा भी है...
बीती ताहि विसार दे, आगे की सुधि लेय । भाइयो, भगवान ने तो ससार को सर्वथा छोडने का ही उपदेश दिया है। परन्तु जो उसे सर्वथा छोडने में अपने को असमर्थ पाते हैं, उन्हे श्रावक धर्म को स्वीकार करने के लिए वहा है । अत आप लोगो की जैसी मी स्थिति हो उसके अनुसार आत्मकल्याण मे लगना ही चाहिए। यदि और अधिका कुछ नही कर मकते तो तुलसीदास के शब्दो मे दो काम तो कर ही सकते हो?
तुलसी जग मे आय के, कर लीजे दो फाम ।
देने को टुकडा भला, लेने को हरिनाम । एक तो यह कि अपन भोजन में से एक, आधी चौथाई रोटी भी गरीव भक्षित दुखित प्राणी को खाने के लिए अवश्य दो और लेने के नाम पर एक भगवान का नाम लो। परन्तु अन्याय और पाप करके धन कमाना छोड दो। दुखीजनो की वैयावृत्य करो, सेवा करो, और असहायो की जितनी बने सहायता करो। हमेशा सत्पुरुपो की संगति करो और उनके उपदेशो को सुनो। सुनने से ही तुम्हे भले बुरे का ज्ञान होगा और तभी तुम बुरे का त्याग कर भले कार्य को करने में लग सकोगे। सुनने से असख्य लाभ है । सुनकर सार को ग्रहण करो और अपना जीवन उत्तम बनाओ। वि. स. २०२७ कार्तिक शुक्ला १२
जोधपुर