________________
३२६
प्रवचन-सुधा भी कानो मे पड जायें, तो एक ही वचन से उसका उद्धार हो सकता है। आपको यह विचारने की आवश्यकता नही है कि अभी तक इतना सुन लिया। फिर भी बेडा पार नही लगा, तो धागे क्या लगेगा। अरे भाई, शुद्ध हृदय से सुना ही कहा है ? यदि शुद्ध हृदय से सुना जाय और कलेजे पर चोट पड़े तो तुम्हारी बुद्धि तत्काल ठिकाने पर नाजाय और जग से बडा पार हो जाय । हम तो इमी आशा को लेकर प्रभु के मगलमय वचन सुना रहे हैं। प्रभु ने यही कहा ह कि हे भव्य जीवो, जिन सामारिक वस्तुओ से तुम मोह कर रहे हो, वे तुम्हारी नही है, उनको छोड़ो और जिस वैराग्य और ज्ञान से तुम दूर भागते हो और प्रेम नहीं करते हो, वे तुम्हारी हैं। इसलिए पर मे प्यार छोडकर अपनी वस्तु से प्यार करो। तभी तुम्हारा उद्धार होगा।
एक वार एक पडित काशी से शास्त्र पढकर अपने देश को जा रहा था । मार्ग में एक बड़ा नगर मिला। उसने सोचा कि खाली हाथ घर व्या जाऊ ? कुछ न कुछ दान-दक्षिणा लेकर जाना चाहिए, जिससे कि घर के लोग भी प्रसन्न हो। यह विचार कर वह उस नगर के राजा के पास गया और उन्हे आशीर्वाद दिया । राजा ने पूछा-पडितजी, कहाँ से आ रह हा ? उसने कहामहाराज, काशी से पढकर जा रहा है। राजा ने पूछा-क्या-क्या पढा है ? उसने कहा- महाराज, मैंने व्याकरण, साहित्य इतिहास ज्योतिप, वैद्यक पुराण, वेद, स्मृति आदि सभी ग्रन्थ पढ़े हैं। राजा ने कहा बहुत परिश्रम किया है । वतागे, अब आपकी क्या इच्छा है ? पडित न कहा--जितना कुछ मैंन पटा है, वह सव आपको सुनाना चाहता हूँ। राजा ने कहा--इतना समय मुझे नहीं है। आप तो दो-चार श्लोको म सव वेद-पुराणो का सार सुना दीजिए । तव पडित ने कहा-महाराज, में तो एक श्लोक मे ही सबका सार मुना सकता हूँ। राजा ने कहा-सुनाइये । वह बोला-महाराज, सुनिये -
अष्टादशपुराणेषु, व्यासस्य वचन द्वयम् ।
परोपकार पुण्याय, पापाय परपीडनम् ।। व्यासजी ने अपने अठारहो पुराणो मे और सर्व वेद-वेदाग, उपनिपद, भागवत, गीता आदि मे मारभूत दो ही वचन कहे हैं कि पर प्राणी का उपकार करना पुण्य कार्य है और पर-प्राणी को पीडा पहुचाता पाप कार्य है। मनुष्य को पाप कार्य छोटकर के पुण्य कार्य करना चाहिए। __यह सुनकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ ! और फिर उसने कहा-आत्मकल्याण की तो बात आपने बहुत सुन्दर वतलाई । अव यह बतलाइय कि किस