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प्रवचन-सुधा
मम्मण सेठ गरीब कैसे है ? उसके यहां तो ६६ करोड़ की पूजी हे । और उसके मकान पर ध्वजा फहाती है। यह सुनकर अंणिक वोले-अरे, उसके शरीर पर तो पूरे कपड़े भी नहीं हैं और वह भारी बेंचकर अपनी गुजर करता है । अभयकुमार के बहुत कहने पर भी महाराज नहीं माने और बोले- आज मैं स्वयं चलकर के देखूगा । तुम चलने की तैयारी कराओ और सुनो-सव मंत्री और सरदार भी साथ चलेंगे । अभयकुमार 'हां' भर कर चले गये।
यथासमय पूरी तैयारी के साथ श्रेणिक मम्मण सेठ के यहां जाने के लिए निकले तो सारे नगर में हलचल मच गई। वे पूरे राज-परिवार के साथ जव मम्मण सेठ के मकान के मामने पहुंचे तो मोतियों से भरे थालों और सुवर्ण घटों पर रत्न दीपकों को लिए हुए सुहागिनी स्त्रियों ने राजा की आरती उतारी और मंगल-गीत गाकर उनका स्वागत किया। वहीं एक ओर रात की ही वेयभूषा में खड़े हुए मम्मण को देखकर श्रेणिक ने अभयकुमार से कहा-यही वह दुखियारा मम्मण है । तभी रत्नों से भरा सुवर्ण थाल लाकर और सामने आकर मम्मण ने मुजरा किया। श्रेणिक ने सोचा -वेचारा कही से मांग करके लाया होगा, अतः अभयकुमार से कहा-यह नजराना नहीं रखना, किन्तु वापिस कर देना। सेठ ने नजराना लेने के लिए जव बहुत आग्रह किया, तव अभयकुमार के इशारे पर वह स्वीकार कर लिया गया। मम्मण ने महाराज से हवेली के भीतर पधारने के लिए प्रार्थना की। उसकी नौ खंड की हवेली और उस पर ध्वजा फहरती देखकर श्रेणिक बड़े विस्मित हुए और अभयकुमार से बोलेक्या सचमुच में यह इसी की हवेली है ? अभयकुमार के हां भरने पर उन्होंने भीतर प्रवेश किया। सब सरदारों को यथास्थान बैठाकर महारानी और मंत्रियो के साथ वह राजा श्रेणिक को ऊपर ले जाने लगा, तब उन्होंने पूछासेठजी, तुम्हारा बैल कहां है ? मम्मण बोला-महाराज, चौथे खंड पर है। श्रेणिक यह सोचते-कहीं जानवर भी ऊपर की मंजिलों में रहते हैं-चौथी मंजिल पर पहुंचे और वहां रत्न-निर्मित जगमगाते बैल को देखकर श्रेणिक बहुत विस्मित हुए। मम्मण बोला-महाराज, एक बैल तो तैयार हो गया है, किन्तु दूसरे के सींगों की कमी है। मुझे तो ऐसा-पहिले जैसा बल चाहिए है । उसको यह बात सुनकर अंणिक अवाक रह गये और सोचने लगे--
'राजा सोचे वैचू राज सरे केम भलु यह भारो। यदि मैं अपना सारा यह राजपाट भी वेंच दूं, तो भी इस बैल की जोड़ी का बल नहीं आ सकता है। प्रत्यक्ष मे वे चेलना रानी से वोले- बताओ, यह दुखिया है, या सुखिया है ? रानी बोली-नाथ, आप स्वयं ही देख रहे हैं ।