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आर्यपुरुष कौन ?
२६६ देखने और सुनने की शक्ति को कम कर दिया था ! मैं आपसे क्षमा मागता है। आपके घी का कोई नुकसान नहीं हुआ है। एवं यथापूर्व भरे हुए हैं। तभी देव ने सभी श्रावकों के रसोई घरों की भोज्य वस्तुओं को कल्पनीय कर दिया और सर्व साधुओं ने आहार पाणी प्रासुक प्राप्त कर पारणा किया । देवता भी सर्व साघुओ को वन्दन-नमन करके गौर सेठ की भूरि-भूरि प्रशंसा करता हुआ अपने स्थान को चला गया।
बन्धुओ, यह कथानक मैंने इस बात पर कहा है कि जो आर्यपुरुप होते है, वे यह विचार नहीं करते हैं कि मैं इसे दे रहा हूं तो यह पीछा भावेगा, या नही ? वे तो निर्वाचक होकर के ही दान देते है और जो कुछ भी किसी का उपकार करते हैं, वह प्रत्युपकार की भावना न रखकर ही करते हैं । वे व्यापार करते हैं तो उसमें भी अनुचित लाभ उठाने की भावना छोडकर और घाटा उठाकर भी सस्ते भाव से अन्न के व्यापारी लोगो को अन्न सुलभ करते हैं और वस्त्र या अन्य वस्तुओ के व्यापारी अपनी-अपनी वस्तुभों से मुनाफा कमाने की वृत्ति को छोडकर सस्ते और कम मूल्य पर ही वस्तुओं को देकर जनताजनार्दन की सेवा करते है। आज के युग मे ऐसे आर्य पुरुषो के दर्शन भी दुर्लभ हो रहे हैं। जिधर देखो, उधर ही लोग दुष्काल के समय में अन्न को छुपा-छुपाकर रखते हैं और काले बाजार मे दूने और तिगुने दाम पर बेचकर मनमाना मुनाफा कमाते हैं। यह बार्यपना नहीं, बल्कि अनार्यपना है। भाप लोगो को यह अनार्यपने की प्रवृत्ति छोड़ना चाहिए और मार्यों के वंशज होने के नाते अपने भीतर आर्य गुणो को प्रकट करना चाहिए ।
चार प्रकार के पात्र भाइयो, पात्र भी चार प्रकार के होते है – रत्नपात्र सुवर्णपान, रजतपात्र और मृत्तिका पात्र । रत्नों के पात्र समान तो तीर्थकर भगवान हैं। सोने के पात्र साधु-सन्त लोग हैं | चांदी के पात्र समान व्रती श्रावक और सम्यक्त्वी भाई हैं। तथा शेप लोग मिट्टी के पात्र समान है। जैसे पात्र में वस्तु रखी जायगी, उसकी वैसी ही महत्ता होती है। इसी प्रकार उक्त चार प्रकार के पात्रों मे से जिस प्रकार के पात्र को दान दिया जायगा और जैसे भावों के साथ दिया जायगा, वह उसी प्रकार का होनाधिक फल देगा। पात्रदान को सुफल अवश्य ही प्राप्त होता है, इसमे कोई सन्देह नहीं, इसलिए पात्र को दान देते समय आपको सदा ऊंचे भाव रखना चाहिए और हीन विचार कभी भी मन में नहीं लाना चाहिए। इस प्रकार जो आर्यपुरुप होते है, उनका पहिला