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सिहवृत्ति अपनाइये !
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बुद्धिमान सद्गृहस्थो, स्थानाङ्गसूत्र मे विविध प्रकार के भावो का वर्णन किया गया है। जो मनुष्य को मानवता ग्रहण करने के लिए प्रेरणा देते है । हमारे तीर्थंकरो ने हमे मानव बनाने की जितनी चिन्ता की है, उतनी न हमारे माता-पितामओ ने की और न मित्र या स्वजन-सम्बन्धियो ने की है। और तो क्या स्वय आपने ही नहीं की है । भगवान ने मानवता प्राप्त करने के लिए जो उपदेश दिया उसका प्रधान कारण यह है कि इस मानव-देह का पाना अति दुर्लभ है। यदि मनुष्य इस देह को पाकर के भी इसे मफल नहीं कर सका और इसे व्यर्थ गवा दिया तो फिर अनन्त ससार मे परिभ्रमण करना पडेगा। इसलिए उन्होने अनेक युक्तियो के साथ मानवता को प्राप्त करने के लिए बार-बार प्रेरणा दी। आज के त्यागी सन्त महात्मा लोग भी भगवान के उन वचनो का ही अनुसरण करके आपको प्रेरणा दे रहे है।
चार प्रकार के मनुष्य : स्थानाङ्गसूत्र में चार प्रकार के पुरुप बतलाये गये हैं --सिंह के समान, हाथी के समान, वृषभ के समान और अश्व के समान । ये सभी सज्ञी पचेन्द्रिय तियच है और चारो ही उत्तम जाति के पशु हैं । यद्यपि सिंह मासाहारी पशु है, तथापि वीरत्वगुण के कारण उसे उत्तम कहा गया है । जो वीर व्यक्ति होता है, वह सर्वत्र निर्भय रहता है । कहा भी है
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