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मनुष्य की चार श्रेणिया
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उद्धार कीजिए । आज आपके योग्य अनुष्टि एक लड्डू लेन मे आया हुआ है, उसे पाप ग्रहण कीजिए । यह सुनकर मुनिराज उसके घर मे गये । और उसने वह लहू बहा दिया । मुनिगज उसे लेकर चले गये । लड्डू के कुछ खेरे घी के घड़े में चिपके रह गये थे तो इसने उन्हे निकालकर अपने मुख मे जाला ! उसका स्वाद लेते ही मन मे पश्चात्ताप करने लगा-हाय, ऐसा स्वादिष्ट लड्डू मैंने व्यर्थ ही साधु को बहा दिया। माज तो घर-घर ऐसे लड्डू आये हुए ये । इन्हे तो कही से भी वैसा मिल सकता था। इस प्रकार के अनुताप से इसने घोर पाप का बन्ध किया और काल मास मे काल करके यह पशु-योनि में उत्पन्न हुआ। वहा से आकर यह मम्मण सेठ हुआ है। पूर्वोक्त दान के प्रभाव से इसके घर मे मद्धि-वैभव तो अपार हे । किन्तु पीछे से जो स्वाद की लोलुपता से इसने अनुताप किया था, उससे इसके दुर्मोच भोगान्तराय कर्म बंध गया। मुनि को आहार का लाभ कराने से इसकी लाभान्तराय टूटी हई है। अत दोनो ही कर्म अपना-अपना प्रभाव अब प्रत्यक्ष दिखा रहे है। यह सुनकर और भावो की विचित्रता से कर्मवन्ध की विचिनता या विचार करते हुए श्रेणिक मुनिराज की बन्दना करके अपने घर को वापिस चले आये । ___ भाइयो, यह मम्मण का जीव मुर्दार प्रकृति का मानव था, जो दान देकर के भी पछताया। इसी प्रकार मुर्दार प्रकृति के मनुष्य पहिले तो कोई उत्तम कार्य करते ही नही है। यदि किसी कारण-वश करे भी, तो पीछे पछताते है और अपने किये कराये काम पर स्वय ही पानी फेर देते है । यही कारण है कि अनेक लोगो के पास अपार सम्पत्ति होते हुए भी वे न उसको भोग ही सकते है और त दान ही कर सकते हैं और अन्त में खाली हाथ ही इस ससार से विदा हो जाते है । इसलिए जिन्हे भाग्योदय से यह चचल लक्ष्मी प्राप्त हुई है, उन्हे कजसी छोडकर जीवन को सफल बनाने का प्रयत्न करना चाहिये ।
उपसहार चन्धुलो, आप लोगो के सामने मैने चार प्रकार के मनुष्यों के चित्र उपस्थित किये हैं। अब आप लोग बतलाये कि आपको उदार व्यक्ति पसन्द है, या अनुदार ? सरदार व्यक्ति रुचता है, या मुर्दार ? चारो ओर मे आवाज आ रही है कि उदार और मरदार व्यक्ति पसन्द है । भाई, इनमे से ये दो ही जाति के मनुष्य ग्राह्य हूँ---उदार और सरदार । तया अनुदार और मुर्दार व्यक्ति त्याच्य है । अव आप लोगो को इनमे से जो रुने, उसे ग्रहण कर लीजिए और में ही बन जाइये । कहीं ऐसा न हो कि मरदार बनने का भाव