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प्रवचन सुधा
स्वप्न कह सुनाया । स्वप्न सुनकर ज्योतिपी ने कहा-आप दूर से आये और थके हुए प्रतीत होते हैं और भोजन का समय भी हो रहा है। अतः पहिले आप स्नान कीजिए और भोजन करके विश्राम कीजिए । तत्पश्चात् आपके स्वप्न का फल बतलाऊंगा । मूलदेव भी कल से भूखा और थका हुआ था । अतः ज्योतिपी के आग्रह को देखकर नहाया-धोया। पंडितजी ने पहिनने के लिए धुले हुए दूसरे वस्त्र दिये और अपने साथ बैठा कर प्रेम से उत्तम भोजन कराया और उसे विश्राम के लिए कहकर स्वयं भी विश्राम करने के लिए चले. गये । तीसरे पहर पंडितजी अपनी बैठक में आये और मूलदेव भी हाथ-मुह धोकर उनके पास जा पहुंचा । पंडित जी ने पूछा-- कुवर साहब, आप स्वप्न का फल पूछने को आये हैं, अथवा मेरी परीक्षा करने के लिए आये है ? यदि स्वप्न का ही फल पूछने को माये हैं, तो मैं जो बातें कहूं, उसे स्वीकार करना होगा। मूलदेव ने उनकी बात स्वीकार की। पंडितजी बोले--तो मैं स्वप्न का फल पीछे कहूंगा। पहिले आप मेरी सुपुत्री के साथ शादी करना स्वीकार करो । यह सुनकर मूलदेव ने कहा-पंडितजी, मेरा कोई ठिकाना नहीं है
और आप शादी स्वीकार करने की कह रहे हैं, यह कैसे संभव होगा । पंडितजी बोले--आप इसकी चिन्ता मत कीजिए । मूलदेव ने भी सोचा कि जब लक्ष्मी आ रही हैं, तब मैं भी क्यों इनकार करूं । प्रकट में बोला आपकी आज्ञा स्वीकार है । तब पंडितजी ने कहा - आपके स्वप्न का फल यह है कि आपको सात दिन के बाद इसी नगर का राज्य प्राप्त होगा ! यह कहकर उन्होने सर्व तैयारी करके गोधूलि की शुभवेला में मूलदेव के साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया और वह भी जामाता बन कर सुख से उनके घर रहने लगा।
भाइयो, सात दिन पीछे अकस्मात् नगर के राजा का स्वर्गवास होगया। उनके कोई सन्तान नहीं थी । वंशज अनेक थे । पर उनमें से किसी एक को राजा बनाने पर युद्ध की आशंका से मंत्री और सरदार लोगो ने मिलकर यह निश्चय किया कि हथिनी के ऊपर नगारा रखा कर, मस्तक पर जल-भरा सुवर्ण कलश रख कर और सूड में पुष्पमाला देकर नगर में नगारा वजवाते हुए यह घोषणा करायी जाय कि यह हथिनी जिसके गले में यह पुष्पमाला पहिनायेगी और सुवर्ण-कलश से जिसका अभिषेक करेगी, वही व्यक्ति राज्य का उत्तराधिकारी होगा । अव हथिनी नगर में घूमने लगी। उसके पीछे राज्य के प्रमुख अधिकारी गण भी पूरे लवाजमे के साथ घूमने लगे । एक-एक करके सभी मोहल्लों के घरो के सामने से हधिनी निकलती चली गई, पर उसने