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उत्साह ही जीवन है
भाइयो, जिनेश्वर देव की वाणी में अभी आप क्या सुन रहे थे ? क्या वात आई है ? भगवान ने कहा है कि भव्य जीवो, अपना उत्थान स्वयं करो। उत्थान का अर्थ है मन, वचन और कायर से अपनी आत्मा का उद्धार करना । आत्म-उद्धार के लिए आवश्यक है कि अपने भीतर उत्साह प्रकट किया जाय और स्फूति जागृत की जाय । जिसके मन में उत्साह प्रकट हो जाता है उसके वचन में भी उत्साह आ जाता है और काया में भी उत्साह आ जाता है । यदि मन मे उत्साह नहीं होगा शरीर में भी उत्साह नहीं होगा।
जिन मनुप्यों के हृदय में लौकिक या सांसारिक कार्यो के करने में उत्साह होता है, समय आने और निमित्त मिलने पर उनके हृदय में पारलौकिक, आध्यात्मिक और धार्मिक कार्यों में भी उत्साह प्रकट हो जाता है । इसीलिए कहा गया है कि 'जे कम्मे सूरा ते धम्मे सूरा' । अर्थात जो कर्म करने में शूरवीर होते हैं। जिस व्यक्ति के हृदय में स्वाभिमान होता है वह कहता है कि मैं कौन हूं, मेरा कुल, जाति और वंश कौन सा है ? फिर मैं आज क्यों पतन की ओर जा रहा हैं ? भाई, भगवान् महावीर के वचन तो उत्साहवर्धक ही हैं । निरुत्साही होना, निरुद्यमी होना और भाग्य के भरोसे बैठे रहना, ये महावीर के वचन नहीं, किन्तु कायरों के वचन हैं ।
दया करना वीर का धर्म है कितने ही लोग कहते हैं कि यदि मनुष्य में उत्साह अधिक होता है तो
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