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प्रवचन-सुधा
प्रकार जो शासन की, समाज की और धर्म को प्रभावना करते है, तो लोग उन्हें आचार्य मान लेते हैं । जो परम्परा में आचार्य बनता है और जिसकी सेवाएं देखकर संघ जिसको आचार्य बनाता है, उन दोनों में बहुत अन्तर होता है । पहिले को शासन की रक्षा में प्राप्त होने वाले कष्टों का अभव नहीं होता, जब कि दूसरे को उनका पूर्ण अनुभव होता है। स्वयं पुस्पार्थ करके बने हए आचार्य को इस बात की दिन-रात चिन्ता रहती है कि यह संघ कहीं मेरे सामने ही नष्ट न हो जाय । परन्तु जिसने संघ को बनाया नहीं, उसे इस बात की चिन्ता नही रहती है । जो निर्मल बुद्धि वाले शासन के प्रभावक होते हैं, उनको अपने कर्तव्यो में संलीन रहना पड़ता है, तभी वे अपने कर्तव्य और ध्येय को विधिवत् पालन कर सकते हैं। ___ भाइयो, आप लोग जानते हैं कि जो सर्वप्रथम दुकान को जमाता है, उसे सुचारु रूप से चलाने के लिए कितना अधिक परिश्रम करना पड़ता है और कितने अधिक व्यक्तियो का सहयोग लेना पड़ता है। किन्तु जो व्यक्ति जमीजमायी दुकान पर आकर के वैठ जाता है, उसे क्या पता कि इस दुकान को जमाने में किसे कितना कष्ट उठाना पड़ा है ? जिसने अपने हाथ से मकान बनाया है और उसके लिए सैकड़ो कष्ट सहे और हजारों रुपये खर्च किये हैं । अव यदि कोई कहे कि यह मकान गिरा दो, तो वह कैसे गिरा देगा ? जिस कुम्हार ने वर्तन बड़े परिश्रम से बनाये है, यदि उससे कहा जाय कि इन वर्तनों को फोड़ दो, तो क्या वह फोड़ देगा? नही । क्योकि उसने बनाने में कठिन परिश्रम उठाया है । इसी प्रकार जो व्यक्ति आत्मा के गुणों का जानने वाला है और उसने एक-एक आत्मिक गुण को बड़ी कठिनाई से प्राप्त किया है, उससे कह दो कि वह अपने इन उत्तम गुणों को छोड़ देवे तो वह कैसे छोड़ देगा? वह तो अपने गुणों में ही निमग्न रहेगा। जिसने जिस कार्य को मुख्य माना है वह गौण कार्य के पीछे मुख्य कार्य को कैसे छोड़ देगा? जिस व्यक्ति ने जिस कार्य का निर्माण किया है, वह अपने कार्य का विनाश स्वप्न में भी नहीं देख सकता है , उसकी तो सदा यही भावना रहेगी कि मेरा यह निर्माण किया कार्य सदा उत्तम रीति से चालू रहे । अरे भाई, गानेवाला जब लय-तान के साथ गा रहा हो और उसमें तन्मय हो रहा हो, उस समय यदि उसे भी रोका जाय, तो उसे भी दर्द होता है। एक नाटक या नृत्यकार को उसे नृत्य या नाटक दिखाते हुए यदि बीच में रोका जावे तो उसे भी धक्का लगता है। अपने-अपने कार्य मे सबको सलीनता होती है और सलीनता आये विना उस कार्य का आनन्द भी नहीं आ सकता है। पर भाई, किसी