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ज्ञान की भक्ति
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उन्होंने पूछा-स्वामिन्; अब उनके उद्धार का भी उपाय बतलाइये ! तब मुनिराज ने कहा- हाँ, उसके उद्धार का उपाय है । सुनो
पंचमी तप कोज भवि प्राणी, पंचम गति-दाता रे। ज्ञान भक्ति से दोनों भव में, होय बहू सुख-साता रे ।। पांच बरस पर मास पंच है, पांच पक्ष गिन लोज्यो ।
शुद्ध भाव से करो आराधन, गुरु-भक्ती रस पोज्यो ।। हे राजन्, यदि ये दोनों अपने पूर्व पापों की पहिले आलोचना निन्दा करें और अब ज्ञान और ज्ञानीजनो की भक्ति करें और ज्ञान की आराधना करें तो इनके कर्म दूर हो सकते है। उसकी विधि यह है -प्रथम वर्ष में 'मति ज्ञानाय नमः' इस मंत्र का सवा करोड़ जाप करे, दूसरे वर्ष में 'श्रुतज्ञानाय नमः' इस मंत्र का सवा करोड़ जाप करे। इसी प्रकार तीसरे भव में 'अवधि ज्ञानाय नमः' इस मंत्र का, चौथे वर्ष में 'मनः पर्ययज्ञानाय नमः' इस मंत्र का और पांचवें वर्ष में 'केवलज्ञानाय नमः' इस मंत्र का सवा करोड़ जाप करें। तत्पश्चात् पांचों मंत्रों की जाप पांच मास और पांच पक्ष तक और भी करें। तथा निरन्तर ज्ञान और ज्ञानी पुरुपों की सेवा, वैयावृत्य करें तो इनके रोग टूर हो सकते हैं। राजा और सेठ को आचार्य के बचन जंच गये । वे सहर्ष वन्दन करके अपने घर गये और उन्होंने अपने पुत्र और पुत्री से उक्त सब वृत्तांत वाहकर गुरुक्त विधि समझा कर उक्त मंत्रों के जाप करने के लिए कहा । वे दोनों ही अपने-अपने दु:ख से बहुत दुखी थे, अतः उन्होंने यथाविधि जाप करते हुए ज्ञान की आराधना प्रारम्भ कर दी। इधर राजा ने भी ज्ञान की आराधना में सहयोग दिया और लड़कों की उत्तम शिक्षा-दीक्षा के लिए एक उत्तम विद्यालय खोला। सेठ ने भी लड़कियों के लिए एक बड़ी कन्याशाला स्थापित की। जिनमें सैकड़ों लड़के और लड़कियां शिक्षा प्राप्त करने लगीं। इस प्रकार ज्ञान की आराधना करते हुए क्रम क्रम से राजकुमार का कुप्ट कम होने लगा और लड़की का गंगापन भी । व्रत के पूर्ण होने तक राजकुमार बिलकुल नीरोग हो गया और वह लड़की भी अच्छी तरह बोलने लगी। यह देखकर राजा और सेठ बहुत प्रसन्न हुए और दोनों ने मिलकर उनका परस्पर में विवाह कर दिया। वे दोनों स्त्री-पुरुष बनकर परस्पर सुख से काल विताने लगे।
कुछ समय के पश्चात् उक्त आचार्य महाराज फिर अपने संघ के साथ वहां आये । इन दोनों ने जाकर भक्ति पूर्वक उनकी वन्दना की और श्रावक के व्रत अंगीकार किये । श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का विधिपूर्वक वे पालन करने लगे और अपने-अपने पिताओं के द्वारा सस्थापित संस्थाओं का भली