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ज्ञान की भक्ति
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सम्यग्ज्ञान रतन मन भाया, आगम तीजा नैन बताया। अक्षर शुद्ध अर्थ पहिचानो, अक्षर अर्थ उभय सग जानो।। जानो सुकाल पठन जिनागम, नाम गुरु न छिपाइये, तप रीति गहि वह मौन दे के, विनय गण चित लाइये। ये आठ भेद करम-उछेदक, ज्ञानदर्पण देखना,
इस ज्ञान ही सौं भरत सीझा, और सब पर पेखना ।। भाइयो, ज्ञान की महिमा अगम अपार है, जिस ज्ञान से भरत ने विना तपस्या के ही केवल लक्ष्मी प्राप्त की और जिसके वल से आज तक अनन्त महापुरुपो नै मोक्ष पाया, उस ज्ञान का निरन्तर अभ्यास करना चाहिए। नवीन ज्ञानाभ्यास के लिए आज का दिन सर्वश्रेष्ठ है, बिना पूछा मुहर्त है । ज्ञानाम्यास करना ही सच्ची ज्ञान भक्ति है । दीप-धूप जलाना और फल-फल चढाना भक्ति नही, वह तो जीवो की हिंसा होने से उल्टी विराधना ही है। वि० स० २०२७ कातिक सुदि ५
जोधपुर