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धनतेरस का धर्मोपदेश
तुभ्य नमः सकलदोष विवजिताय, तुभ्यं नम सकलमर्मप्रदर्शकाय । तुभ्यं नम परमसेवक तारकाय, तुभ्यं नमो रतिपलेर्मदनाशकाय ॥
बन्धुओ, आज धनतेरस है। धन दो प्रकार का है-एक वह जिसे ससार रुपये-पैसे आदि के रूप में मानता है और दूसरा है ज्ञानधन । पहिला धन भौतिकवादी, अज्ञानी और मिथ्या-दृष्टियो को प्रिय होता है और वे लोग सतत उसकी प्राप्ति के लिए सलग्न रहते हैं। किन्तु दूसरा धन आत्मानन्दी, सदज्ञानी और सम्यग्दृष्टि जीवो को प्रिय होता है । लौकिक जन आज के दिन भौतिक धन की पूजा-उपासना करते हैं। किन्तु पारलौकिक सुख के इच्छुक आत्मानन्दी पुरुप आज के दिन अपने जानधन की उपासना और आराधना करते हैं, क्योकि वे जानते हैं कि
घन समाज गज वाजि राज तो काज न आवे, ज्ञान आपको रुप भये थिर अचल रहावे । ज्ञान समान न आन जगत मे सुख को कारन,
यह परमामृत जन्म जरा मृति रोग-नशावन ॥ भाई, यह हाथी घोडे वाला राज-पाट और दुनिया का ठाट-बाट बढाने बाला लौकिक धन सब यही पडा रह जाता है, मरते समय जीव के साथ नहीं जाता और परभव मे दुखो से छुडाने में सहायक नहीं होता है । फिन्तु ज्ञानधन अपनी आत्मा का स्वरूप है, वह प्राप्त हो जाने