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प्रवचन-सुधा
ने जन्म लिया वाल-त्रीठाए की, सयम धारण किया, और घोर तपश्चरण किया और केवल ज्ञान पाकर अरिहन्त पद भी पाया । परन्तु तब तक भी उनकी साधना पूर्ण नही थीं। आज के दिन निर्वाण प्राप्त करने पर ही उनकी साधना पूर्ण हुई। क्योकि उन्होने अपने साध्यरूप शिवपद को आज ही प्राप्त किया।
दीपावली-महोत्सव प्रसिद्ध जिनसेनाचाय भगवान महावीर के निर्वाण काल का वर्णन करते हुए लिखते हैं
चतुर्थकालेऽर्ध चतुर्थमासक विहीनताविश्चतुरन्दशेषके । स कातिके स्वातिषु कृष्णभूत सुप्रभात सन्ध्यासमये स्वभावत ॥ अघातिफर्माणि निरुद्धयोगको विधूय घातीन्धनवद्विवन्धन. । विवन्धनस्थानमवाप शडूरो निरन्तरायोरु सुखानुवन्धनम् ॥ स पञ्च कल्याण महामहेश्वर प्रसिद्धनिर्वाणमहे चतुर्विधैः । शरीर पूजा विधिना विधानतः सुरै समभ्यर्च्यत सिद्ध शासन । ज्वलत्प्रदीपालिकया प्रवृद्धया सुरासुरैः दीपितया प्रदीप्तया। तदा स्म पावानगरी समन्तत प्रदीपिताकाशतला प्रकाशते ।। ततस्तु लोक. प्रतिवर्षमादरात्प्रसिद्ध दीपालिकयात्र भारते । समुद्यतः पूजयितु जिनेश्वरं जिनेन्द्र निर्वाण विभूतिभक्तिभाक् ।।
-हरिवशपुराण, सर्ग ६६, श्लोक १६-२० अर्थात्-जव चतुर्थकाल मे तीन वर्ष साढे आठ मास शेप रहे तव स्वाति नक्षत्र में कार्तिक अमावस्या के सुप्रभातकाल के समय स्वभाव से ही योगनिरोध कर धातिकर्मस्प ईवन के समान अघाति कर्मों को भी नष्ट कर बन्धन से रहित हो ससार के प्राणियो को सुख उपजाते हुए निरन्तराय-अव्या बाध-सुख वाले मोक्ष स्थान को भगवान महावीर ने प्राप्त किया। गर्भादि पाच कल्याणको के महान् अधिपति, सिद्ध शासन भगवान महावीर के निर्वाण के समय चारो निकायो के देवो ने आकर विधिपूर्वक उनके शरीर की पूजा की। उस समय सुर और असुरो के द्वारा जलायी हुई देदीप्यमान दीपको की भारी मालिका से अपापानगरी का आवाश सर्व ओर से जगमगा उठा। उस समय से लेकर भगवान के निर्माण कल्याणक की भक्ति से युक्त ससार के प्राणी इस भारतवर्ष म प्रतिवर्प आदर-पूर्वक इस प्रसिद्ध दीपमालिका के द्वारा भगवान महावीर की पूजा करने के लिए उद्यत रहने लगे । अर्थात् उनकी स्मृति मे दीपावली का उत्सव मनात हुए चले आ रहे हैं ।