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आत्मलक्ष्य की सिद्धि
२०५ और तेरे मे उतरने की ताकत है, तब तक तुझे सभल जाना चाहिए । लोभ के विषय में कहा है कि
लोभेन रात्री न सुखेन शेते, लोभेन लोक समये न मुड क्त ।
लोभेन पात्रे न ददाति दान, लोभेन काले न करोति धसम् ।। लोभ के मारे मनुष्य रात्रि मे सुख से नही सोता है और न समय पर खाता-पीता ही है। लोभ के कारण पान मे दान भी नहीं देता है और न समय पर धर्म साधन ही करता है । किन्तु लोभ के वशीभूत होकर रात-दिन इधरउधर चक्कर काटा करता है।
वन्धुओ, आप लोगो को जगाने का कितना प्रयत्न करता है और आप लोग हुंकारा भी भरते हैं । फिर भी इस लोभ पिशाच से अपना पीछा नहीं छुडाते हैं। जब तक आपकी विवेक बुद्धि काम कर रही है और लोभरूपी दल दल मे निमग्न नहीं हुए हैं, तब तक उससे वाहिर निकलने का प्रयत्न कर सकते हैं । जब उस दल-दल मे आकण्ठ मग्न हो जाओगे, तब उससे बाहिर निकलना नहीं हो सकेगा । फिर तो पछताना ही हाथ रह जायगा । किसी कवि ने कहा है कि
मक्खो बैठी शहद पै, रही पंख लिपटाय ।
हाथ मलै अरु सिर धुने, लालच बुरी बलाय ।। भाइयो, जब मक्खी के समान लोभरूपी शहद मे फस जाओगे तो फिर उद्धार नहीं हो सकेगा। इसलिए समय रहते हुए चेत जाना ही बुद्धिमानी है । जो लोग समय पर चेत कर आत्म-कल्याण के मार्ग पर चलने लगते है, वे ही अपना उद्धार कर पाते है । अत. आप लोगो को ऐसा आदर्श उपस्थित करना चाहिए कि पीछे वाले भी आपका स्मरण और अनुकरण करे । सासारिक कामो को अनासक्ति से करते हुए आत्मकर्तव्य पर चलते रहना ही मुक्ति का मार्ग है । यदि कदाचिन् आषाढाचार्य के समान बीच मे कर्मों का भोग का आजाय, तो उसके इलाज के लिए आपको भी अपने हितैषी मित्रो को कस करके रखना चाहिए कि भाई, समय पर तुम मुझे सावचेत कर देना । भाई, सावधानी सदा आत्म-रक्षा करती है । इसलिए आप लोगो को आत्मलक्ष्यी होना चाहिए । वि० स० २०२७ कार्तिक शुक्ला २
जोधपुर