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सर्वज्ञवचनों पर आस्था
चार औषधियां: भाइयो, संसार में अनन्त वस्तुए हैं, उनमें जो वस्तु किसी रोग का विनाश करती है, उसे औषधि कहते हैं । उनमें कोई औपधि ऐसी भी होती है कि जिसके रोग हो उसका तो रोग मिटा दे और जिसके रोग नहीं हो, उसके रोग की उत्पत्ति कर दे। एक औपधि ऐसी होती है कि उसे लगातार सेवन करने पर भी न कुछ लाभ पहुंचाती है और न हानि ही करती है। तीसरी औपधि केवल हानि ही पहुंचाती है, परन्तु लाभ कुछ भी नहीं करती है। और चौथी औषधि ऐसी है कि यदि रोग हो तो उसे मिटा दे और नहीं हो तो पारीर में शक्ति बढ़ावे ! अब मैं पूछता हूं कि इन चार प्रकार की औपधियों में से अपने लिए लाभकारी औपधि कौन सी है? वही है, जो कि रोग मिटाने वाली हो और यदि रोग नहीं है तो बल देनेवाली हो। यही मंगलमयी सर्वोषधि है । शेष तीनों प्रकार की औषधिया तो निरर्थक हैं—बेकार हैं ।
उक्त औपधियों के समान ही, संसार में चार गतियां हैं---नरक, तियंच, मनुष्य और देवगति । इनमें तीन गतियां तो तीन जाति की औषधियों के समान है। वे हैं-- नरकगति, तिर्य चगति और और देवगति । परन्तु चौथी मनुष्य गति सर्वरोगापहारी औपधि के समान है। मानव का जीवन ही ऐसा जीवन है कि जिसके द्वारा भव-रोग मिट सकता है और नया बल एवं नव जीवन प्राप्त हो सकता है। परन्तु इस प्रकार की औषधि को देनेवाले और रोगी
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