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स्वच्छ मन · उदार विचार
भंडार में धान्य की क्या कमी है। जब वे वापिस मांगेगे, तब उठाकर दे दूंगी। यह विचार कर उसने उन दानों को निरादरपूर्वक फेंक दिया। दूसरी बहू ने सोचा कि संभाल कर रखने में तो दिक्कत है। इन्हें खाकर देखें कि किस जाति की धान्य के ये दाने हैं, उसी जाति के दाने में मांगने पर भंडार में से निकाल करके दे दूंगी। ऐसा विचार कर उसने छिलके छीलकर उन्हें खा लिया। तीसरी बहू ने सोचा ससुरजी बड़े होशियार हैं, समाज में शिरोमणि हैं । इतने लोगों के सामने इन दानों के देने मे अवश्य ही कोई रहस्य होगा । अतः इन्हें संभाल करके रखना चाहिए, जिससे कि मांगने पर मैं ज्यों के त्यों उन्हें संभला सक? ऐसा विचार कर के उसने एक डिबिया में बन्द करके उसे तिजोड़ी में रख दिया। सबसे छोटी चौथी वह ने सोचा कि ससुरजी ने इन्हें मांगने पर देने को कहा है, सो ज्यों के त्यों वापिस करने में क्या कुशलता है । इन्हें बढ़ा करके देने में ही चातुर्य है। ऐसा विचार करके उसने अपने पीहर उन दानों को भेजकर कहला दिया कि इन दानो को वोकर आगे-आगे बढ़ाते जाना । इस प्रकार पांच वर्प वीत गये ।
एक दिन सेठानीजी ने सेठजी से कहा-आपने अपना सब कारोबार तो पुत्रों को संभला दिया और वे अच्छी रीति से उसे संभाल भी रहे है, सो आप तो निःशल्य हो गये है। पर अब मुझे भी तो निःशल्य करो, ताकि मै भी धर्म-साधन कर सकू? सेठ ने कहा-बहुओं की परीक्षा के लिए ही तो उस दिन धान्य के दाने दिये थे। अव वापिस मांगने पर उनकी परीक्षा हो जायगी मोर तदनुसार तुम्हार। भार भी उन्हें संभलवा करके तुम्हें निःशल्य कर दूंगा।
जव पूरे पांच वर्ष बीत गये, तब सेठजी ने सब समाज को पुनः भोजन के लिए बुलाया । खान-पान के पश्चात् पंचों को वैठक मे बिठाया और अमानत लेकर बहुओ को बुलाया। बड़ी बहू झट से भंडार में से धान के पांच दाने लेकर ससुर के पास पहुंची और दाने दिये । ससुर ने कहा-ईश्वर की साक्षी पूर्वक कहो कि ये वे ही दाने हैं ? तब वह बोली- ये वे दाने नहीं हैं । सेठ ने पूछा- उनका तूने क्या किया था ? वह बोली--मैंने उन्हें इधर-उधर फेंक दिया था। यह सुनकर सेठ ने उसे एक ओर बैठ जाने को कहा । दूसरी व आते समय भंडार मे से शालि धान्य के पांच दाने लेती आई और ससुर को दे दिये । सेठ ने ईश्वर की साक्षीपूर्वक पूछा कि क्या ये वे ही दाने है ? तब वह बोली-ये वे तो नहीं हैं। सेठ ने पूछा - फिर तूने उनका क्या किया? वह बोली-मैंने उन्हें छील करके खा लिया था—यह मोच कर कि ये जित