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मनुष्य की शोभा सहिष्णुता
१०३ पाप नहीं है ? परन्तु इन पापों को छोड़ने की बात नहीं कहेंगे । पर आततायी के आक्रमण से आत्मरक्षार्थ शस्त्र उठाने और मुकाविला करने में पाप-पाप चिल्ला करके उन्हें कायर बना देंगे। मैं पूछता हैं कि कसरत करने में कौनसा पाप है ? आप जैन हैं, तो क्या व्यायाम करने के भी अधिकारी नहीं रहे ? अरे, शास्त्रों को पढ़ो - जहां किसी भी जैन राजा का वर्णन आता है, वहां पर साफ लिखा है कि प्रातःकाल शारीरिक बाधाओं से निवृत्त होकर आयुध शाला में व्यायामशाला में जाता है और वहां पर नाना प्रकार के व्यायाम करके, अनेक मल्लों के साथ कुश्ती करके और नाना प्रकार के तैलों से शरीर मर्दन करके हृष्ट-पुष्ट होकर बाहिर निकलता है। जव ऐसे जैन राजा होते थे तभी वे और उनकी सन्तान साधु बनने पर भयंकर से भयंकर उपसर्गों और परीपहों के आने पर बडोल और अकम्प होकर उनको सहन करते थे । भाई, जो सहनशीलता साधुपने में अपेक्षित है उसे हमारे धर्म-गुरु गृहस्थ श्रावकों के लिए बता रहे हैं, यह एक आश्चर्य की बात है। साधु तो घर-भार से मुक्त हो गया, अतः उनकी साधना तो एक मात्र आत्मोपकार की रहती है। परन्तु गृहस्थ के ऊपर तो सारे घर का भार है। यदि वह साधु जैसा विचार करने लगे तो सारा गृहस्थपना ही समाप्त हो जाय । हमारी इस कायरता के कारण ही दुनिया को यह कहने का मौका मिल गया कि ये तो ढीलो घोती पहिनने वाले बनिये हैं 1 यही कारण है कि चोर और डाकू सभी आप लोगों को लूटते रहते हैं। आप लोगों में जो कायरता के भाव भर दिये गये हैं, यह उन्हीं का परिणाम है कि आप लोगों की जाति का जो गौरव था, वह चला गया है । और अपना शेरपना छोड़कर सियारपना आपने अगीकार कर लिया है।
भाइयो, आप लोग तो केवल योजनाएं बनाने में ही लगे रहते हैं, पर करते-धरते कुछ नहीं हैं । आप से तो ये छोटे-छोटे गाँव वाले अच्छे हैं, जो कि कुछ न कुछ करते रहते है क्योंकि उनके शरीर में शक्ति है। इसीलिए अवसर माने पर उन के खून में जोश आये बिना नहीं रहता है ।
निर्भीक वनो! जैतारन-पट्टी में देवली गांव है। वहां माहेश्वरी आर ओसवालों के अनेक घर थे । एक बार एक माहेश्वरी भाई अपनी स्त्री के साथ किसी बाहिर गांव से आरहा था, तो रास्ते में डाकू मिल गये। उन्होंने इन दोनों को रोककर स्त्री के सारे गहने उतार लिये। किन्तु पैरों में जो कड़ें थीं, वे मजबूत थी, अतः नहीं खुल सकी । तब एक डाकू ने कहा कि कुल्हाड़ी से पैर काट कर