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मनुष्य की शोभा-सहिष्णुता
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से तो मेरा जवाई जिन्दा नहीं हो सकता है। मेरे भाग्य मे जो कुछ लिखा था, वह हो गया । इस प्रकार उत्तेजित लोगो को समझा बुझा करके उमने शान्त क्यिा । पर भाई, यह उन मसखरो की भयकर मसखरी है, जिसने कि बेचारे के प्राण ले लिये । और एक वेचारी अबला कन्या के माथे का सिन्दूर सदा के लिए पोछ दिया । उस ब्राह्मण ने अपने जमाई के वापको भी बुलाकर के समझाया और कहा कि जो चला गया है वह तो लौट कर आ नही सक्ता, भले ही आप कुछ कर ले। अब तो मामले को आगे बढाने मे अपनी बदनामी ही होगी । उस ब्राह्मण मे सह्नशीलता थी, तो ऐसे दारुण दुख को मह लिया और दूसरो को भी जैल जाते से बचा दिया। अन्यथा मसखरो को अपनी मसखरी का अच्छा मजा मिलता और जेलखाने की हवा खानी पडती ।
भाइयो, साधु हो, या श्रावक हो, अथवा साधारण जैन हो । किसी भी पदवी का धारक हो सहनशीलता सबका मुख्य गुण है। यदि सह्नशीलता है, ता उस पदकी शोभा है और यदि वह नही है तो उस पदकी कोई शोभा नहीं है । सहनशील पुरुप अपने विचारो पर दृढ रहता है। जरासी परिस्थिति बदलते ही कायर पुरुप जैसे वाचाल हो उठते है, सहनशील पुरप वैसा वाचाल कभी नहीं होता। जो सहनशील बनकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति मे लगा रहता है, वह अवश्य सफलता प्राप्त करता है। किन्तु जो असहिष्णु होकर इधरउधर भटकता है, वह कभी अपने उद्देश्य मे सफल नहीं होता। असहनशील व्यक्ति न मिन-मडली मे बैठने के योग्य है और न व्यापारियो के बीच में ही पैठने के योग्य है । वह शेखचिल्ली के समान क्षण मै रुष्ट और क्षण मे सन्तुष्ट दिखता है, इसलिए उस पर कोई विश्वास नहीं करता है। लोग कहते भी हैं कि इसे मत छोडो, नही तो यह व्यर्थ मे बखेडा खडा कर देगा। इससे अपनी भी इज्जत-आवरू जायगी। जो सहनशील व्यक्ति होता है, उसकी सब लोग प्रशसा करते है और उसके लिए कहते है कि यह तो हाथी पुरुप है, नगाड़े का ऊट है। इसे कुछ भी कह दो, परन्तु यह कभी आपसे बाहिर नही होगा। ऐसा व्यक्ति अपने हर काय को हर प्रकार मे सर्वत्र सफल कर लेता है।
समर्थ बनकर साहसी बने । भाई, आज लोगा मे से सहनशीलता के अभाव से ही कितन बिगाड हो रहे हैं । देखो-लडके पढने के लिए स्कूल-कालेजो मे जाते है । सहनशीलता के न होने से वहा भी दलवन्दी होती देखी जाती है। वह राजपूत-दल है तो यह जाट-दल है । एक दल सदा दूसरे दल को पछाडने के लिए उद्यत रहता है। उनके बीच आप की समाज के भी लडके पढते है, वे उनसे रात दिन मार