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स्वच्छ मन उदार विचार
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कोई वस्तु संभाल कर नहीं रख सकी अत इसे घर-भर की झाडा-बुहारी का काम सोपता है । यह घर की सफाई करके कचरे को वाहिर डाला करेगी, क्योकि इसने डालना ही सीखा है। इस प्रकार सेठ ने सब पचो और कुटुम्बी जनो के समक्ष अपने घर की व्यवस्था करके और सव का पान-सुपारी से सत्कार करके विदा कर दिया।
वृद्धि करते रहो। भाइयो, यह रूपक है । हमारे गुरुदेव ने भी हमे अहिंसादि पाच व्रत रूप धान्य के दाने सौंपे हुए है । अब जब वे वापिस मागेगे तव उन्हे सभलाना पडेगा । अब आप लोगो को यह देखना है कि हमने उन व्रतो को बड़ी बहू के समान इधर-उधर तो फेक करके उन्हे नष्ट तो नही कर दिया है। यदि कर दिया है, तो विश्वास रखिये कि आप लोगो को भी कहा पर जन्म लेकर कूडा-कचरा झाडना पडेगा। यदि आपने खाने पीने मे मस्त होकर के उन व्रत्तो की परवाह नहीं की है, तो परभव मे आपको भी रसोई-वनाने या भाड भूजने का काम मिलेगा। जो अपने व्रतो को ज्यो का त्यो सुरक्षित पालन कर रहे है, वे परभव मे भी इसी प्रकार के श्री सम्पन्न महापुरुप बनेंगे । और जो अपने ब्रतो को उत्तरोत्तर उस छोटी बहू के समान बढा रहे हे वे स्वर्ग लोक मे असरय देवी-देवताओ के स्वामी बनेगे ।।
आज प्राय देखा जाता है कि व्रत-नियमादि को लेकर कितने हो पुरुष तो खाने में रहते है, और कितने ही फेकने मे रहते हे ! कई सम्भालने मे सावधान हैं और कई वढाते भी है। इनमे से तीसरा और चौथा नम्बर तो ठीक हैं। पर पहिला और दूसरा नम्बर ठीक नहीं। चौथे नम्बर के पुरुप भाग्यशाली हैं जो कि लिये हुये व्रतो को बढ़ा रहे है। ऐसे पुरुप ही सघ के मुखिया, अधिकारी और समाज के अधिपति बनते हैं। उनके कन्धो पर सब का उत्तर दायित्व रहता है । वे ससार-पक्ष को सम्भालते है और धर्म पक्ष को भी सम्भालते हैं। उनका कार्य घर, समाज, राज्य और देश मे प्रशसनीय रहता है।
दूसरो का पोषण करनेवाला आप लोगो ने सुना होगा कि राजा श्रणिक सो भाई थे। उनके पिता राजा प्रसेनजित् ने सोचा कि इन सबमें कौन सा पुत्र राज्य को सम्भालने के योग्य है ? कौन मेरी राज्यगद्दी का भले प्रकार से निर्वाह करेगा ? कौन सबमे तेजस्वी और बुद्धिमान् है । ऐसा विचार कर उन्होने उन सबकी परीक्षा के लिए एक दिन उद्यान म भोजन का आयोजन किया और अपने सर्व पुनो को