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प्रवचन-सुधा
निकालना चाहिए । कर्मों की गति को कोई नही जानता। यदि भाग्यवश जैसा कहा और वैसा ही हो गया तो पीछे कितना दुःख होता है ।
अनेक पुरुप और स्त्रियों के वचनों में इतना विप भरा होता है कि उनके वचन सुनने से कितने ही आत्मघात तक कर बैठते हैं। इसलिए मनुष्य को सदा विचार पूर्वक प्रिय वचन ही बोलना चाहिए और भापा के जानकार होते हैं, वे सदा हित-मित और प्रिय वचन ही बोलते हैं। इसलिए बुद्धिमान पुरुषों को वाणी का विवेक सदा रखना चाहिए। वि० स० २०१७ कार्तिकवदी ६
जोधपुर