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मन भी धवल रखिए !
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थे णिक ने आदेश दिया- अच्छा इसे ले जाओ और इसका सारा धन-माल लेकर इसे शूली पर चढ़ा दी । तव अभयकुमार ने कहा- महाराज, यह कैसा न्याय है ? इसे आपने या मैंने चोरी करते हुए नहीं पकड़ा है । यह तो अपने मुख से ही अपना अपराध स्वीकार कर रहा है । फिर इसे शूलो पर क्यों चढ़ाया जाये । मैं इस दंड से सहमत नहीं हूं । पहिले आप चल कर इसके घर का धन माल देखें । यह तो देने को तैयार है । मगर उसके घर का पता नहीं चलेगा । मैं छानबीन करते करते थक गया हूं । पर अभी तक इसके घर का पता नहीं लगा सका हूं । यह तो यों ही रास्ते चलते पकड़ में आगया। तब थंणिक ने पूछा- अरे रोहिणिया, तू अपने घर का पता ठिकाना बतायगा ? वह बोला-हा महाराज, मैं बताऊंगा, आप मेरे साथ चलिये । राजा अंणिक दल-बल और अभय कुमार के साथ उसके पीछे चलें । उसका मकान अत्यन्त धुमावदार स्थान पर था और उसने मकान के अनेक गुप्त स्थानों पर धन को रख छोड़ा था । राजा श्रेणिक ने उसका सब धन उठवा करके राज्य के खजाने में भिजवा दिया । फिर उससे पूछा--तू क्या चाहता है । वह बोलामहाराज आप जो भी दंड मुझे देना चाहैं, वह दे दीजिए । मैं उसे सहने को तैयार हूं। यदि नहीं देना चाहते तो जो मैं चाहता हूँ, उसे करने की आज्ञा दीजिए । श्रेणिक ने पूछा---तू क्या चाहता है ? रोहिणिया ने कहामहाराज, मैं अव संसार में नहीं रहना चाहता हूँ। इसे छोड़कर भगवान् महावीर के चरणों की शरण में जाना चाहता हूं। श्रेणिक आश्चर्य-चकित होकर बोले - अभयकुमार, यह क्या कह रहा है? अभयकुमार ने कहामहाराज, आप स्वयं ही सुन रहे हैं । परन्तु मैं तो इसे चोर मानने के लिए तैयार नहीं हूं। मैं तो इसे साहकार कहता है, क्योंकि इसने अपना अपराध स्वयं ही स्वीकार किया है। अब जैसी आपकी इच्छा हो सो कीजिए। यदि मेरे से ही पूछते हैं, तो मैं यही निवेदन करूंगा कि आप मुझे मंत्री पद से अवकाश दीजिए और इसे मंत्री वना दीजिए। इसके द्वारा देश की बड़ी भारी उन्नति होगी। यह सुनते ही रोहिणिया बोला--महाराज, मुझे मंत्री पद नहीं चाहिए । मैं तो भगवान की चरण-शरण में जाना चाहता हूं। राजा श्रेणिक ने सहर्प उसे जाने की आज्ञा दे दी। वह भगवान के समवसरण में पहुँचा और भगवान से प्रार्थना करके और उनकी अनुज्ञा पाकर के अपने हाथ से केश-लुचन करके साधु बन गया और रोहा मुनि के नाम से प्रसिद्ध होकर तपस्या करने लगा।
भाइयो, वत्तायो, वह कोयले जैसा काला रोहिणिया हीरा जैसा निर्मल