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आत्मा-विजेता का मार्ग
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हैं। यह बडी वीर जाति है । उसमें जन्म लेनेवाले अनेक महापुरुषों ने मारवाड़ की बड़ी सेवाएं की हैं। उनके वंशज सुंदरसी, नेनसी मेड़ता चले गये | और एक भाई का परिवार नागौर चला गया । इनमें नेनसी के पुत्र थे मुलोजी, उसके पुत्र माणकसीजी उनकी स्त्री का नाम रूपाजी था । उनकी कुक्षि से आसोज सुदी दशमी को एक पुत्र का जन्म हुआ । वह बड़ा होनहार, अद्भुत पराक्रमी और रूपवान था । उसके नेत्र बड़े विशाल थे । अतः उसके पूर्वजों ने उसका नाम भूधर रखा । भूधर कहते हैं पहाड़ को | दुनिया कहती है कि यदि ये पहाड़ इस भूमि को नहीं रोके होते, तो यहां उथल-पुथल हो जाती । पर्वतों के कारण ही यह स्थिर है । जो भूमि को धारण करे, उसे ' भूधर कहते हैं । उस पुत्र के माता-पिता ने भी अनुभव किया कि यह पुत्र भविष्य में धर्म के भारी बोझ को उठानेवाला होगा, अत: उसका नाम भूधर रखा । भूधर क्रमशः बढ़ने लगे और उनकी पढ़ाई होने लगी। आपके वचपन' में ही मानकसीजी का और माता जी का स्वर्गवास हो गया । ये बड़े तेजस्वी और उदात्त वीर थे । उस समय जोधपुर के महाराजा अपने सरदारों का बड़ा ध्यान रखते थे । उन्होंने भूघर को भी होनहार और होशियार देखकर अपने पास में रखा और उनकी निशानेवाजी को और तेजस्विता को देखकर उन्हें फौज का अफसर बना दिया | ये ज्यों-ज्यों बड़े हुए, त्यों-त्यों इनका साहस और पराक्रम भी बढ़ता गया । इन्होंने अनेक युद्धों में विजय प्राप्त की । परन्तु इधर सोजत का जो इलाका अरावली पहाड़ के पास आया हुआ है, वहां पर बहुत डाकू रहते थे । उनकी डाकेजनी से सारा इलाका उन दिनों संकट में पड़ गया था । तव महाराज ने भूधर जी को हुक्म दिया की आप पांच सौ घुड़सवारों के साथ वहां रहें । जव भूधर जी वहाँ पहुंचे, तो कुछ दिनों में ही चोरों और डाकुओं का नामोनिशान भी न रहा ।
बहादुर भूधर : अब कोई कहे कि वे तो महाजन थे, फिर उनसे यह काम कैसे हुआ ? परन्तु भाई, जैन सिद्धान्त यह बतलाता है कि जब तक कोई दूसरा व्यक्ति अपने को नहीं सताता है और देश, जाति और धर्म में खलल नहीं पहुंचाता है, तब तक उसे सताने की आवश्यकता नहीं है । परन्तु जब आक्रमणकारी सताने के लिए उद्यत हो जायें और सताने लगे, तब दया का ढोंग करके बैठ रहना, यह दया नही कायरता है-बुजदिली है । उस वीर बहादुर भूधर ने सारे इलाके को डाकुओं के भय से रहित कर दिया और शान्ति का वातावरण फैला दिया । उनका सम्बन्ध रातडिया मेहता के यहां हो गया, तब वे नागौर छोड़कर सोजत में रहने लगे ।