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आत्म-विजेता का मार्ग
नहीं है । परन्तु बुद्धिमान मनुष्य कोई उत्तर नहीं देता है। परन्तु उचित अवसर आते ही वह ऐसा पराक्रम दिखाता है कि कोई फिर उसे जीत नहीं सकता। अब जीत के साथ जीत--जो महान पुरुप आध्यात्मिक है--जिन्होंने अपनी आत्मा का साक्षात्कार कर लिया है, वे उत्तरोत्तर विजय पर विजय प्राप्त करते जाते हैं। अव हार के साथ हार कहते हैं-संसार के सभी प्राणी दिन पर दिन हारते ही जाते हैं । उनके जीवन में कभी विजय का नाम ही नहीं है, क्योंकि वे मिथ्यात्व, असंयम, कपायादि के द्वारा उत्तरोत्तर पाप कर्मो का बन्ध करते ही रहते हैं । इस प्रकार जैसे विजय के साथ हार का और हार के साथ विजय का सम्बन्ध है उसी प्रकार विजय के साथ विस्य का और हार के साथ हार का भी सम्बन्ध चलता रहता है ।
आज विजयादशमी है । तिथियां पांच प्रकार की होती हैं-नन्दा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा । एक पक्ष में पन्द्रह तिथियां होती हैं। उनमें से एकम, पष्ठी, एकादशी ये तीन नन्दा तिथि हैं। द्वितीया, सप्तमी, द्वादशी ये तीन भद्रा तिथि हैं। तृतीया, अप्टमी, त्रयोदशी ये तीन जया तिथि हैं । चतुर्थी, नवमी, चतुर्दशी ये तीन रिक्ता तिथि हैं । और पंचमी, दशमी, पूर्णमासी ये तीन पूर्णा तिथि हैं। ज्योतिपशास्त्र के अनुसार रिक्ता तिथियों में किया हुआ कार्य सफल नहीं होता। शेप तिथियों में किया गया कार्य उनके नाम के अनुसार आनन्द-कारक, कल्याण-कारक, विजय-प्रदाता और पूरा मन चिंतित करनेवाला होता है।
विजयादशमी के विषय में वैदिक सम्प्रदाय के अनुसार ऐसा उल्लेख मिलता है कि महिपासुर नामका एक बड़ा अत्याचारी राजा था। उसके अत्याचार से सारे देश में हाहाकार मच गया था और प्रजा त्राहि-त्राहि करने लगी। तब आज के दिन चामुण्डा देवी ने उसका मर्दन किया था। इसलिए आज का दिन विजयादशमी के नाम से प्रसिद्ध हो गया । अर्वाचीन पुराणों के अनुसार आज के दिन श्री राम ने रावण पर विजय प्राप्त करके सीता को प्राप्त किया था, इसलिए भी यह तिथि विजयादशमी कहलाने लगी ।
सच्ची विजय परन्तु जैन सिद्धान्त कहता है कि जो पांच इन्द्रिय, चार कपाय और मन इन दश के ऊपर विजय प्राप्त करता है, उस व्यक्ति की दशमी तिथि ही विजयादशमी है। जिन्होंने अपने एक मन को जीत लिया, उन्होंने चारों कपायों को जीत लिया । और जिन्होने इन पाचों को जीत लिया उन्होंने पांचो इन्द्रियों को जीत लिया । केशी कुमार ने जब गौतम स्वामी से पूछा- कि तुम