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प्रवचन-मुधा
और भी अधिक मा की बताई है। इसमे मैं अब शहजादी के गर्म वा यथार्थ निर्णय पर सकू गा । फिर कहा-महाराज, आप भक्तो के साथ प्रतिदिन माथापच्ची करते है फिर भी इने-गिने चेले बनते हैं। किन्तु यदि आपकी उक्त बात सत्य सिद्ध हो गई, तो मैं आपके हजारो चेले बनवा दूगा।
इसके पश्चात् खींवसीजी सरकारी काम करके सीधे दिल्ली पहुचे और काम का सारा व्योग सुना दिया। तत्पश्चात् कहा-~-जहापनाह-मैंने कहा था कि पाच कारणो से गर्म रहता है । यह सुनकर बादशाह बोला--तुम चाहे कुछ भी कहो, मगर मुझे तुम्हारी यह वात नहीं जचती है । फिर तू जोधपुर का मुसद्दी है । कहीं से धड करके यह बात कह रहा है । तव सीवमीजी वोले--जहापनाह, बिना भोग के जो गर्म रहता है, उसमें हडिडया नहीं होती हैं, केवल रुई के थले के समान मास का पिण्ड होता है। तच वादशाह बोला -~-यदि वह बात है, तो मैं शहजादी को नहीं मारूंगा। इसके पश्चात् बादशाह न शहजादी के महल के चारो ओर सगीन पहरा लगवा दिया । यथा समय प्रसूति होने पर जब उसे बादशाह के हाथ पर रखा गया तो वह उन्हे बह रुई के थैले के समान हलका प्रतीत हुआ। वादशाह यह देखते ही वोल उठे गजव । यदि मडारी खीवसी नहीं होता, तो मैं खुदा के घर मे गुनहगार हो जाता है और बेचारी शहजादी बैंकसूर ही मारी जाती। तब सीवसीजी को बुलाकर कहा - तू तो बडी अजीब बात लाया है। अरे, बता, यह कहा से लाया ? तब उन्होने कहा- हुजूर, मैं अपने गुरु के पास से लाया हू। बादशाह बोला- तेरे गुरु ऐसे आलिम-फाजिल है जो ऐसी भी बाते बता देते हैं। ऐसे गुरु के तो हम भी दर्शन करना चाहते हैं। तव खीवसीजी ने कहा—जहापनाह, आप वादशाह हैं और वे बादशाहो के भी बादशाह हैं । वे किसी के बुलाये नही आते है । और यदि उनके जच जावे तो स्वय आ भी जाते हैं । तव बादशाह बोले---एक बार तू उनके पास जाकर के कह तो सही। अन्यथा हम चलेंगे। तव भडारीजी उनके पास गये । उन्हें वन्दन नमस्कार करके बैठ गये और फि में आपका श्रावक हू, अत मुझे श्रावकधर्म सुनाओ। तब गुरु महाराज ने गुरु मत्र सुनाकर श्रावक-धर्म का उपदेश दिया। तत्पश्चात् मडारीजी ने प्रार्थना की कि महाराज, आप दिल्ली पधारो। बादशाह आपका इन्तजार कर रहा है। तव उन्होने कहा-जब जैसा अवसर होगा, वैसा हो जायगा। परन्तु फरसने का भाव है। तब भडारीजी वहा पर ठहर गये और विहार में उनके साथ हो लिय । तव गुरु महाराज ने कहा - 'नो कप्पई' अर्थात् गृहस्थ के साथ विहार नही कल्पता है । तव मडारीजी न सोचा कि गुरु महाराज के साथ मे नहीं रहना । किन्तु तीन