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प्रवचन सुधा
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सम्पर्क में आकर यह रत्न कहीं कंकर न बन जाय ? और मैना सोचती थी कि कब मैं इनको इनके वास्तविक पद पर आसीन हुआ देखूं ? ऐसे उत्तम विचार उनके ही हो सकते हैं जिन्होंने जैन सिद्धान्त को पढ़ा है, जिन्होंने कर्मों के रहस्यो को समझा है और जिनके हृदय में विश्व वन्धुत्व की भावना प्रवाहित हो रही है । आप भी जैन कहलाते है और दयाधर्मं को बड़ी-बड़ी बातें करते हैं | परन्तु अपने हृदय पर हाथ रखकर देखें कि क्या आपकी भी ऐसी भावना है ? आपकी तो भावनाएं तो थोडी सी पूंजी के बढ़ते ही हवा हो गई हैं । आपके रिश्तेदार परिस्थिति से विवश होकर यदि आपके सामने आकर कुछ सहायता की याचना करते हैं, तो आपका मुख भी नहीं खुलता है । अरे, रोना तो इस बात का है कि यदि बोल गये तो सौ-दो सौ देना पडेंगे । परन्तु आपको यह पता नहीं है कि जैसी 'शर्म आप बेचे' हुए है, वैसी ये गरीब लोग नहीं बेचे हुए हैं । इस गरीबी में भी इनके भीतर त्याग और वैराग्य की भावना है । अरे धनिको, यदि आप लोगों के पास ते सौ-दोसी रुपये चले भी गये और किसी की सेवा कर दी, तो आपके क्या घाटा पड़ जायगा ? जब जन्म लिया था और असहाय थे, तब क्या यह विचार किया था कि आगे क्या खायेंगे ? कैसे काम चलायेंगे ? और भाई-बहिनों की शादी कैसे करेंगे ? तब आमदनी तो सौ-दो सौ रुपये सालाना की नहीं थी । फिर भी उस समय कोई चिन्ता नही थी । और अब जब कि हजारों रुपये मासिक व्याज की आमदनी है, 1 कोई धन्धा नहीं करना पड़ता है और गादी तकिया पर बैठे आराम करते रहते हैं, तत्र सन्तोष नहीं है, किसी को देने की भावना नहीं है, रिस्तेदारों से प्रेम नहीं है और किसी की सहायता के भाव नही है । पहिले आठ आने का व्याज था, तब भी उतने में आनन्द था । और आज दो और चार रुपये सैकड़े का ब्याज है और लेने वाले की गर्ज के ऊपर इससे भी ऊपर मिलता है और इस प्रकार विना हाथ-पैर हिलाये लाखों रुपयों की आमदनी है । फिर भी आपका हृदय कोड़ों से भी छोटा वन गया है कि पैसा कम हो जायगा । अरे भाई, यदि कम हो जायगा, तो भी तुम्हारा क्या जायगा । हाथ से तो कमाया नही है और न साथ लाये थे । यदि चला गया तो क्या हो जायगा ? और यदि आपने परिश्रम से कमाया है और फिर भी चला गया, तब भी चिन्ता की बात नही हैं, फिर अपने पुरुषार्थ से कमा लोगे । इसलिए दिल को छोटा करने की आवश्यकता नही है ।
पहिले राजाओं को रोना क्यों नहीं पड़ता था ? इसलिए कि जब जस्ता तो ले लेते थे । और जब जाने का अवसर होता था, तो स्वयं उसका मोह