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पापों की विशुद्धि का मार्ग-आलोचना
प्रकार के उपचार प्रारम्भ किये गये। मगर राजा की हालत उत्तरोत्तर बिगड़ती गई और नाड़ी ने भी अपना स्थान छोड़ दिया। राजा की यह दशा देखकर रानी और राजकुमार रोने लगे और सारे राजमहल में कुहराम मच गया।
इसी समय बेहोशी की हालत में राजा को ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई मनुप्य आकर कान में कह रहा है कि क्यों व्यर्थ अपने प्राण गंवाता है। वह सत्य कहता है कि मैं चोर हूं। अतः तू जाकर और उसे चोर मानकर उससे धन ले मा और गुप्त खजाने की चावी भी उससे ले आ। तीसरे दिन वह स्वयं आकर गुप्त खजाने को भी बतला देगा। कानों में ये शब्द पड़ते ही राजा होश में आ गया। सारे लोग यह देखकर बड़े हर्षित हये । राजा ने उसके यहां जाकर कहा-भाई, मेरे खजाने की चावी मुझे दो और मेरा माल भी मुझे दो और अब अन्न-जल ग्रहण करी। उसने सहर्प चावी राजा को सौंप दिया और मन्न-जल को ग्रहण करके अपने नियम को पूरा किया। ___ राजा भी चावी और धन लेकर राजमहल लौट आया। तीसरे दिन वह व्यक्ति राजा के पास आया और नमस्कार करके बैठ गया। राजा ने कहाभाई, तुमने गुप्त खजाने की चावी तो मुझे दे दी है, मगर वह रथान तो बतलाओ, जहां पर कि गुप्त खजाना है। तब उसने कहा--महाराज, आप प्रतिज्ञा कीजिये कि यदि मेरे ऊपर बड़ी से भी बड़ी आपत्ति आयेगी, तब भी मैं खजाने को खाली नहीं करूंगा। आपके प्रतिज्ञा करने पर जब मुझे विश्वास हो जायगा, तभी मै गुप्त खजाने के स्थान को बतलाऊँगा । हा राज्य पर और जनता पर आपत्ति आने के समय आप उससे धन लेकर उसका दुःख दूर कर सकते हैं । परन्तु अपने या अपने परिवार के लिए कभी भी उससे धन नहीं ले सकेंगे। महाराज-द्वारा उक्त प्रतिज्ञा के करने पर वह उस स्थान पर ले गया, जहां पर कि गुप्त खजाना था। राजा ने उसका ताला खोला तो देखा कि वहां पर अपार धनराशि पड़ी है। यह देखकर राजा ने कहा- इसे वन्द कर दो। जब वह खजाने को वन्द करके चावी राजा की देने लगा तव राजा वोला- अब मुझे चावी की आवश्यकता नहीं है । अब तो मैं जब चाहँगा, तभी ताला तुड़वा करके धन को ले लूगा। मैंने इतने दिन तक निभाली । अव में अपनी आत्मा को विगाड़ना नहीं चाहता हूं।
भाइयो, यह एक द्रव्य दृष्टान्त है। भाव-दृष्टान्त यह है कि हमारी आत्मा के निज गुणरूपी गुप्त खजाने की चाबी सम्यक्त्व है। वह परम पिता भगवान ने हमे दी है। परन्तु हमने उस व्यक्ति के समान निरन्तर चोरियां