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उदारता और कृतज्ञता
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। इसके पश्चात सेठ के लड़के का नम्बर आया। दीवान की लडकी ने उसके साथ चौपड़ खेली और यही कहानी उसे सुनाकर पूछा-~-बताइये, उन चारों में धन्यवाद का पात्र कौन है ? उसने कहा-मेरी राय में वह स्त्री धन्यवाद की पात्र है, जिसने कि अपने पति से कोई कपट नहीं किया और अपनी गुप्त बात भी पति से कह दी। और जाकर अपना बचन भी निभाया । उसने इन्हें भी धन्यवाद देकर कहा-- अब आप पधार सकते हैं।
अब चौथा नम्बर आया पुरोहित जी के पुत्र का। वह उसके साथ भी चौपड़ खेली और वही कहानी इसे भी सुनाकर पूछा--बताइये, धन्यवाद का पात्र उन चारों में कौन है ? इसने कहा- धन्यवाद तो चोरों को देना चाहिए कि जिन्होंने ऐसा सुन्दर अवसर पाकर के भी स्त्री और उसके जेवर पर हाथ नही डाला! दीवान की लड़की ने कहा- ठीक है। लड़की ने देखा कि अभी तक भी दिन का उदय नहीं हो रहा है। अतः उसने दासी को इशारा करके दीपक को गुल करा दिया । अंधेरा होते ही वह बोली- अहा, चौपड़ खेलने में कसा आनन्द आ रहा था, कि इसने अंधेरा कर दिया । अव चौपड़ कैसे खेली जाये ? तव वह वोला-आप चिन्ता न कीजिए। मेरे पास एक ऐसी गोली है कि जिससे अभी चादना हुआ जाता है। ऐसा कहकर उसने उस सवा करोड़ के माणिक को निकाल कर ज्यों ही बाहिर रखा कि एकदम प्रकाश हो गया । इसी समय उसने पीने के लिए पानी मांगा। ज्यो ही वह पानी पीने लगा कि उस लड़की ने उसे पैर की ठोकर से नीचे चौक में गिरा दिया । वहां पर अंधेरा हो गया। यह देख वह वोला--अरी, तूने यह क्या किया है ? मेरी यह गोली कहा चली गई है ? वह बोली चिन्ता न कीजिए। दिन के ऊगने पर उसे टूट लेंगे। अभी आप पधारो और विश्राम करो। यह कहकर उसने उसे रवाना कर दिया ।
प्रात: काल होने पर लड़की उस माणिक को लेकर दीवान साव के पास गई और बोली-~-पिताजी, रात में उन चारों के साथ चौपड़ खेली और खेलखेल में आपका काम भी पूरा कर लिया है । यह लीजिये वह माणिक । दीवान साहब यथा समय राजदरवार म पहुंचे और उन चारों मुसाफिरो को वलवाया। दीवान ने वह माणिक राजा साहब के आगे रखते हुए कहामहाराज, यह है वह माणिक । इसे निकालने में मेरी नहीं, किन्तु मेरी पुत्री की कुशलत्ता ने काम किया है । तव राजा ने दीवान की पुत्री को बुलवाया । वह भाई और महाराज को नमस्कार करके बैठ गई। राजा ने अपने भडार से अनेकों माणिको को मंगवा कर उनके बीच मे इस माणिक को मिलाकर उन