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प्रवचन -सुधा
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विचार किया । चलते समय उन्होंने एक जोहरी के पास से सवा करोड़ का एक वढिया माणिक खरीदा और देश को रवाना हो गये । मार्ग में उन्होंने सोचा कि बारी-बारी से एक-एक व्यक्ति प्रतिदिन अपने पास रखकर उसकी संभाल करता चले । तदनुसार वे चारों मित्र एक-एक दिन उस माणिक को अपने पास रखते और रक्षा करते हुये चले आ रहे थे । मार्ग में एक शहर मिला । अतः विश्रामार्थं वे चारों वहां की किमी धर्मशाला में ठहर गये । वहा पर उन्होंने वह माणिक एक जौहरी को दिखाया, तो उसने परीक्षा करके कहा -- यह तो असली नही है, नकली है । यह सुनते ही उन सबके मुख फीके पड़ गये और सोचने लगे कि किसने असली को छिपा करके नकली माणिक रख दिया है । बहुत कुछ विचार करने पर भी जब कुछ निर्णय नही हो सका, तव उन्होने विचारा कि पहले अपन लोग खान-पान आदि से निवृत्त हो लेवें, पीछे इसका विचार करेगे । जव वे खान-पान और विश्राम आदि कर चुके, तब उन्होंने आपस मे कहा कि भाई, असली माणिक है तो अपने चारो में से किसी एक के पास । क्योंकि पांचवां न अपने पास आया है और न अपन ने पांचवें को उसे दिखाया ही है । अत: अच्छा यही है कि जिसने असली माणिक को लेकर यह नकली माणिक रख दिया है, वह स्वयं प्रकट कर दे, जिससे कि बात बाहर न जाने पावे और अपन लोगो में भी मैत्रीभाव यथापूर्व बना रहें । इतना कहने पर भी जब असली माणिक का किसी ने भेद नहीं दिया । तब वे चारों उस नगर के राजा के पास पहुँचे । ओर यथोचित भेट देकर राजा को नमस्कार किया । राजा ने इन लोगों से पूछा- कहां के निवासी हो और किस उद्देश्य से यहां आये हो उन्होने अपना सर्व वृत्तान्त कहा और उस माणिक के खरीदकर लाने, मार्ग में बारी-बारी से अपने पास रखने और यकायक असली के गुम होने और उसके स्थान पर नकली माणिक के आ जाने की बात कही । साथ ही यह भी निवेदन किया कि इस विषय में आप न हम चारों में से किसी से कुछ पूछताछ ही कर सकते हैं और न संभाला ही ले सकते हैं । और माणिक को ठिकाने आ जाना चाहिये । उनकी बात सुन कर राजा बडी दुविधा में पड़ा कि विना पूछताछ किये, या खाना तलाशी लिए माणिक का कैसे पता लग सकता है ? अन्त मे राजा ने दीवान से कहा -- इनकी शर्त को ध्यान मे रख करके माणिक को तीन दिन के भीतर ढूँढ निकालो। दीवान बोला – महाराज, यह कैसे संभव है ? - तुम दीवानगिरी करते हो, या आरामगिरी करते हो ? सुनना चाहता, तीन दिन के भीतर माणिक आता ही चाहिये । अन्यथा तुम्हें मृत्यु
?
राजा ने कहा
मैं कुछ नही