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'त्रिविक्रम-प्राकृत व्याकरण
आर्यायां यः श्वश्वामूल् ।। २१॥
श्व (सास) वाचक आर्या शब्दमें, र्यकारसे संबंधित (होनेवाले) अ-वर्णका लित् (नित्य) ऊ होता है। उदा.-अज्जू । श्वश्रूवाचक (आर्या शब्दमें), ऐसा क्यों कहा है ? (कारण श्वश्रू अर्थ नहीं होता तो यह वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-अज्जा (यानी) माता ॥२१॥
आसारे तु ।। २२ ॥
आसार शब्दमें आच अ-वर्णका ऊत्व विकल्पसे होता है। उदा.ऊसारो आसारो॥२२॥
तोऽन्तर्येलू ।। २३ ॥
___ अन्तर शब्दमें तकारसे संबंधित (रहनेवाले) अ-वर्णका लित् (नित्य) ए होता है। उदा.-अन्तःपुरम् अंतेउरं । अन्तश्चारी अंतेआरी। कचित् (ऐसा ए) नहीं होता। उदा.-अन्तर्गतम् अंतग्ग। अंतोवीसंभणिवेसिआण, अन्तर्विश्रम्भनिवेशितानाम् ॥ २३ ॥
पारावते तु फोः ॥ २४ ॥
पारावत शब्दमें फु का यानी द्वितीय (अ-वर्ण) का ए विकल्पसे होता है। उदा.-पारेवओ पारावओ।। २४ ॥
उत्करवल्लीद्वारमात्रचः ॥२५॥
उत्कर, वल्ली, द्वार शब्दोंमें (और) मात्रच प्रत्ययमें आध अ-वर्णका ए विकल्पसे होता है। उदा.-उक्केरो उक्करो। वेल्ली वल्ली। देरं दारं । विकल्पपक्षमें दुआरं । मात्र प्रत्ययमें- एत्तिअमेत्तं एत्तिअमत्तं एतावन्मात्रम् । बहुलका अधिकार होनेसे, मात्र शब्दमें भी (आध अ-वर्णका ए होता है।) उदा.-मोअणमेत्तं भोजनमात्रम् ॥ २५ ॥
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