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हिन्दी अनुवाद-अ.३, पा. २
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होता है। उदा.-शअणाहँ मुह, स्वजनानां मुखम् । विकल्पपक्षमें-गलिन्दाणं। शअणाणं । व्यत्ययके कारण (देखिए ३.४.७०), प्राकृतमेंभी डाह (आदेश दिखाई देता है)। उदा.-तुम्हाहं । अम्हाहं । सरिसाहं । कम्माहं ॥ २९॥ सौ पुंस्येलतः ।। ३०॥
मागधीमें पुल्लिंगमें (होनेवाले शब्दोंका अन्त्य) अकारका, सु (प्रत्यय) आगे होनेपर, एकार होता है। (सूत्रमेंसे एलू में) ल् इत् होनेसे, यहाँ विकल्प नहीं होता। उदा.-एषः मेषः, एशे मेशे । एषः पुरुषः, एशे पुलिशे। (शब्दोंके अन्त्य) अकारका, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण अन्यथा ऐसा वर्णान्तर नहीं होता।) उदा.-निधिः णिही। पुलिंगमें, ऐसा क्यों कहा है ? (कारण अन्य लिंगोंमें ऐसा नहीं होता)। उदा.-जं। जलं ।। ३० ॥ हगेऽहंवयमोः ।। ३१ ॥
मागधीमें अहं और वयं इनके स्थानपर हगे ऐसा आदेश होता है। उदा.-हगे शक्कावआलतित्थवाशी धीवले । हगे शंपत्ता, वयं संप्राप्ताः॥३१॥ छोऽनादौ श्वः ।। ३२ ॥
मागधीमें अनादि होनेवाले छकारका शकारसे आक्रान्त चकार (=श्च) होता है। उदा.-गच्छ गच्छ, गश्च गश्च । उच्छलति उश्चदि । पिच्छिलः पिश्चिले। व्याकरणके नियमानुसार आनेवाले अनादि छकाभी श्च होता है। उदा.-आपनवत्सलः आवण्णवच्छलो आवष्णवचले। तिर्यक् प्रेक्षते तिरिच्छि पेच्छइ तिलिश्चि पेश्चदि। अनादि (होनेवाला), ऐसा क्यों कहा है ! (कारण अनादि न होनेपर, ऐसा वर्णान्तर नहीं होता)। उदा.-छाले ।। ३२॥ क्षः कः ॥ ३३॥ __मागधीमें अनादि होनेवाले क्षकारका जिव्हामूलीयसे आक्रान्त ककार (क) होता है। उदा.-यक्षः य के। राक्षसः ल कशे। (क्ष) अनादि होनेपरही (ऐसा होता है, अन्यथा नहीं)। उदा.-खए ॥ ३३ ॥
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