Book Title: Prakritshabdanushasanam
Author(s): Trivikram
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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त्रिविक्रम-प्राकृत-व्याकरण
-आदि शब्दके ग्रहणसे (ऐसे अन्य चेष्टानुकारी शब्द जानें । उदा.-) सिरि जर खंडी लोअडी गलि मणिअडा न वीस । तो वि गोट्ठडा कराविआ मुद्धऍ उट्ठबईस ।। ९५॥ (=हे. ४२३.४)
(शिरसि जरा खण्डिता लोमपुटी गले मणयो न विंशतिः । तथापि गोष्ठस्थाः कारिता मुग्धया उत्तिष्ठोपविश ॥)
(यद्यपि) सिरपर फटी पुरानी कमलीकी टुकडी और गलेमें बीस मनियाँ भी नहीं थीं, तथापि सुंदरीने सभागृहके सभासदोंको उठकबैटक करा दिया।
ऐसे चेष्टानुकरण (के उदाहरण)। अनर्थका घइमादयः ॥ ५८॥
____ अपभ्रंशमें घई, इत्यादि निपात निरर्थक (विशेष अर्थ अभिप्रेत नः होनेपरभी) प्रयुक्त किए जाते हैं ॥ ५८ ।।
पेम्मडि पच्छायावडा पिउ कल हि अउ विआलि। घई विवरीरी बुद्धडी होइ विणासह) कालि ।।९६॥ (=हे. ४२४.१) (प्रेम्णि पश्चात्तापः प्रियः कलहायितः विकाले । खलु विपरीता बुद्धिर्भवति विनाशस्य काले )
प्रेममें पश्चात्ताप (और) सायंकालमें प्रियकरसे झगडा (हुआ)। सचमुच विनाशकालमें बुद्धि विपरीत होती है।
(सूत्रमें) आदि शब्दके ग्रहणसे, खाई, इत्यादि (निपात निरर्थक. प्रयुक्त किए जाते हैं)।
- तृतीय अध्याय तृतीय पाद समाप्त -
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