Book Title: Prakritshabdanushasanam
Author(s): Trivikram
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 318
________________ हिन्दी अनुवाद--अ. ३, पा. ४ ३०५ और संघ अर्थों में । (७२१) महल्लो, मुखर, राशि और विस्तीर्ण अथोंमें । (७२२) कव्वालं, कर्मस्थान और वेश्मन् अर्थों में । (७२३) वेल्लवं, विलास और लता अथोंमें । (७२४) आअट्टिआ, परायत्ता और नववधू अथों में । (७२५) सकप्पं, आर्द्र, अल्प, चाप, प्रचुर अोंमें । (७२६) करोडो, काक, नालिकेर और वृष अर्थोंमें । (७२७) रोहं (७२८) रोडी, इच्छा और मति अर्थों में । (७२९) कालिबअं, शरीर और अम्बुद अर्थाने । (७३०) केंज, असती रज्ज और कन्द अथोंमें । (७३१) शिआरं, रिपु, ऋजु और प्रकट अर्थो । (७३२) कुरुलो (७३३) कुरुढो, ये दोनों भी अनघ और निपुण अर्थाने। (७३४) आअं, अतिदीर्घ, विषम, मुसल और कालायस अर्थों में । (७३५) किण्हं, सित अंशुक और सूक्ष्म अर्थों में । (७३६) लाइअ, अजिरार्ध, भूषण और गृहीत अर्थों में । ( ७३७ ) कालिआ, ऋणवृद्धि, काय और अम्बुद अर्थोमें। (७३८ ) कडअल्ली, कण्ड और कर्णिका अर्थों में । ( ७३९) उद्दाणो, कुरर, सगर्व और प्रतिशब्द अथों में । (७४० ) ओलअणं, दयितीभूता और नववधू अर्थोंमें ( ७४१ ) खव्यो, वामहस्त और गर्दभ अर्थोंमें । (७४२ ) डोंगी, रथ्या और स्थासक बयों में । ( ७४३ ) चेंडा (७४४) सीहली, शिखा और नवमालिका अर्थों में । (७४५) उद्दो, ककुद् , जलपुंस और दान्तपृष्ठ अथोंमें । (७४६ ) कोट्टी, स्खलना और दोहविषमा अर्थाने । (७४७) तमणी, लता और व्यधिकरण अर्थों में । (७४८) सत्ती, बंधन, वचन, इच्छा और शिरःस्रज् अर्थों में । (७४९) उप्पिनलं, रत, काक और रजस् अोंमें । (७५० ) णड्डुलं, विनत और दुर्दिन अर्थो । (७५१) उच्चाडणं, उपवन और शीत अथोंमें । (७५२) दावो, दास और गर्दभ अोंमें । (७५३ ) बोंदी, रूप और वचन अथोंमें । (७५४) उम्मल्लो, सान्द्र और भूपति अर्थों में । (७५५) बोडो, धार्मिक और यतिन् अर्थो । (७५६) उच्च डिगो, अधिकमान और निःसीमन् अर्थाने । (७५७) इल्ली त्रि.वि....२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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