Book Title: Prakritshabdanushasanam
Author(s): Trivikram
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
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त्रिविक्रम प्राकृत व्याकरण:
अणुअत्थं । (६६२) वामकर: पड्डो (६६३) डब्बो (६६४ ) डिवओ 1 (६६५) शशी अमअणिग्गमो । (६६६) गृध्रः सरवरो । ( ६६७) सुवर्णकार : झरओ । ( ६६८) पथिकः तिमिच्छा हो । ( ६६९ ) प्रतिहतगमनम् खवडिओ | (६७०) आज्ञा मप्पा | (६७१) निरन्तरम् तित्तिरिओ 1 (६७२) शूर्पादिजीर्णभाण्डम् कडंतरं । (६७३ ) यन्त्रवाहकः भूयो । (६७४) दर्पोद्धुरः सराहो । ( ६७५) निद्रालुः सोज्झिओ । ( ६७६) पताका हुड्डुमा । (६७७) पश्चात् मग्गो (६७८) ओरिल्लं । (६७९) यः सममुषितः एक्कसा हिल्लो । ( ६८० ) यत्र एकं पदं उत्क्षिप्य शिशुः क्रीडति, हिंबिआ । (६८१) या वध्वा उपरि परिणीयते, बहुहाडिणी । (६८२) कुमारी चुंदिणी । ( ६८३) धर्मः पिहरी । (६८४) यौवनोत्कटः अगंडिगोहो । ( ६८५) सुरतम् तत्तु डिल्लं । ( ६८६) पतद्ग्रहः णिलापा (६८७) णिल्लंको । ( ६८८) क्षेत्रजागर : छेत्तसोवणी । (६८९) वप्पओ (६९०) वप्पीहो, चातक और कुमार इन अर्थों में । (६९२) सइसिलिप्पो, युवन् और तरुण इन अर्थों में । (६९४) महालक्खो (६९५) वोद्दही (६९६) पुअंडो (६९०) पुआई, तरुण अर्थ में । ( ६९९) आमल्लअं (७००) बब्बरी, धम्मिल्लरचना अर्थमें । ( ७०१) सिंदीरं नूपुर अर्थमें । ( ७०२) उंडलं मञ्च अर्थमें । (७०३) वडुइओ (७०४) कुट्टारो, चर्मकार अर्थ में । ( ७०५) चुट्टी (७०६) वासी, शिखा अर्थ में । ( ७०७) कंपरं (७०८) कोत्यरं, विज्ञान अर्थ में | (७०९) णिक्खो, चोर और सुवर्ण इन अर्थोंमें । ( ७१०) पडिओ, बंदिन और आचार्य अर्थों में । ( ७११) कमढो, दधिवलशी और पिठर अर्थों में। ( ७१२) अत्रेडुअं, उलूखल और विसंस्थुल अर्थोंमें । (७१३) गोला, गो और नदी अर्थों में। ( ७१४) अक्खणवेलं निधुवन और प्रदोष अर्थों में । ( ७१५) णिज्जाओ, उपकार और पुष्पप्रकार अर्थोंमें । (७१६) काहल्ली, व्ययकरण और भ्राष्ट्र अर्थोंमें (७१७) करंडो, शार्दूल और वायस अर्थों में । ( ७१८) एक्कमुहो, निर्धर्म और अधन अर्थों में (७१९) तल्की, उदर और ऊर्मिमध्य अर्थों में। ( ७२०) उभआरो, प्राम
(६९१) उक्खरो ( ६९३) कहेडो (६९०) पेंडओ
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