Book Title: Prakritshabdanushasanam
Author(s): Trivikram
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 344
________________ टिप्पणियाँ १-१-२९ आत्त्र—१.१.२१ ऊपरकी टिप्पणी देखिए । ईषत्स्पृष्टयश्रुति१.३.१० देखिए । विज्जुला - २०१०२६ देखिए । १.१.३० रेफ — वर्गको रकार कहने के बजाय रेफ ऐसा कहा जाता है । विभागसे १.१.३५ योगविभागात् - - योग के योग यानी व्याकरणका नियम | परंपरासे प्राप्त हुए एक नियमके, कुछ शब्दों की रूपसिद्धिके लिए, दो नियम करके बताना यानी योगविभाग करना | १.१.३७ निपात्यन्ते निपान के रूपमें दिये जाते हैं । निपातन - व्युत्पत्ति देनेका प्रयत्न न करके अधिकृत ग्रंथों में जैसा शब्द दिखाई देता है वैसाही देना । १.१.३८ अव्यय - तीन लिंग, सर्व विभक्ति और वचनोंमें जिसका रूप विकार प्राप्त न कर वैसाही रहता है वह अव्यय । सदृशं त्रिषु लिङ्गेषु सर्वासु च विभक्तिषु । वचनेषु च सर्वेषु यन्न व्यति तदव्ययम् ॥ ३३१ १.१.४३ कत्वाप्रत्ययस्य क्त्वाप्रत्ययका । पूर्वकालवाचक धातुसाधित अव्यय सिद्ध करनेका क्त्वा प्रत्यय है । उदा- कृ कृत्वा । प्राकृतमें क्त्वाप्रत्ययको चार आदेश ( देखिए २.१.२९ ) होते हैं; उनमें से दोनोंमें णकार होता है । सप्— यह विभक्तिप्रत्ययोंकी संज्ञा है । यहाँपर सुप् यानी सप्तमी बहुवचनका प्रत्यय ऐसा भी कहा जा सकता है । सुकारात् णकारात् च - प्राकृत में सप्तमी अनेकवचन ( देखिए २.२.२१ ), तृतीया एकवचन ( देखिए २.२.१८ ) और षष्ठी अनेकवचन ( देखिए २.२.४ ) प्रत्ययों में सुकार और णकार आते हैं । करिअ - यह प्राकृत में क्त्वाप्रत्ययान्त रूप है ( देखिए २.१.२९ )। १.१.४५ लुक् - लोप । (१.१.२२ ऊपर की टिप्पणी देखिए ) । १.१.४८ ( सूत्र में से ) लोपल - श् + लोप + ल् । १.१.५१ अञ्जल्यादिपाठ - अंजलि - आदि गण में निर्देश | अंजल्यादिगणके लिए १.१०५३ देखिए । १-१-९३ इमान्ताः शब्दाः - इमन् ( इमनिच् ) एक तद्धित प्रत्यय है । इस प्रत्ययसे अन्त होनेवाले शब्द यानी इमान्ताः शब्दाः । त्वादेशस्य डिमा'—भाववाचक संज्ञा सिद्ध करने का त्व प्रत्यय है । उसको प्राकृतमें डिमा (डित इमा ) आदेश होता है ( देखिए २.१.१३ ) । १.२ १.२.३ त्यदादित्यत्, इत्यादि सर्वनामको त्यदादि संज्ञा है । इसमें त्यद्, तद्, यद्, एतद्, इत्यादि सर्वनाम आते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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