Book Title: Prakritshabdanushasanam
Author(s): Trivikram
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 353
________________ त्रिविक्रम प्राकृत-व्याकरण ३.३.१७ एउँ गृण्हेप्पिणु ... ॥ २२ ॥-टीकाकारके मतानुसार कोई सिद्ध पुरुष विद्यासिद्धिके लिए धन, इत्यादि देकर नायिकाको उसके पतिसे माँगता है ; उस समयके नायिकाके शब्द इस श्लोकमें हैं । ३.३.१८ रक्ख इ सा ... ॥ २७ ॥ इस श्लोकमें तथा अगले २८ वें श्लोकमें मुंज शब्दसे मुंज नाम होनेवाला मालवदेशका राजा अथवा चालुक्य राजाका उस नामका एक मंत्री आभप्रेत है, ऐसा कोई कहते हैं । ३.३.१९ कसाअ (॥ २९ ॥ )-जैनधर्ममें क्रोध, मान, माया और लोभ इनको कसाअ : कषाय कहते हैं । ३.३.२० तुमुन्प्रत्ययस्य-तुमुन्प्रत्ययका । तुमुन् यानी तुम् प्रत्ययके लिए २.४.१९ ऊपरकी टिप्पणी देखिए । ३.३.२५ तेहिं रेसिं के उदाहरण-कहि कसु रेसिं तुहुँ अवर कम्मारंभ करेसि । कसु तेसिं परिगहु ( कुमारपालचरित ८.७०-७१)। ३. ४ ३.४.२० वायसु ... ॥ ११९ ॥ - हमारे देशमें एक धारणा ऐसी है कि घरपे बैठकर कौआ यदि काव काव करता हो तो घरमें मेहमान आयेगा। इस श्लोकमें विरहिणीका वर्णन है । वह कौवेकी आवाज सुनती है पर आता हुआ प्रियकर उसे दिखाई नहीं देता । इसलिए वह निराश होकर कौवेको हकालती थी। पर इतनेमें प्रियकर उसके दृष्टिपथमें आया । परिणाम यह हुआ - कौवेको हकालनेकी क्रियामें, विरहावस्थामें कृशताके कारण ढीली हुई उसकी आधी चूड़ियाँ जमिनपर गिर पडीं; परंतु प्रियकरको देखनेसे उसे जो आनंद प्राप्त हुआ उससे उसका शरीर-अर्थात् हाथभी-बढ गया; उस कारणसे उसकी शेष आधी चूड़ियाँ तडतड टूट गई। . ३.४.२५ ककार-अन्तमें आनेवाला यह ककार स्वार्थे क प्रत्यय है । ३.४.२८-२९ किंशब्दादकारान्तात्, यत् ... अकारान्तेभ्यःभकारान्त यद् तद् , किम् यानी उनके ज, त और क ये अकारान्त रूप । ३.४.५१ वर्तमानाया:-वर्तमानाका । वर्तमानाके लिए २.४.१ ऊपरकी टिप्पणी देखिए। ३.४.५२ बप्पीहा ... ॥ १४४ ॥-इस श्लोकमें पिउपिउ शब्दपर श्लेष है । ३.४.५३ सप्तमी-विध्यर्थ । ३.४.७२ इस सूत्रके वृत्तिमें त्रिविक्रम देश्य शब्दोंकी सूची देता है। तत्समत. द्भव-संस्कृतसम और संस्कृतभव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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